भारत में करोड़ों महिलाएं एंडोमेट्रियोसिस से पीड़ित क्यों हैं?

महिलाएं आमतौर पर पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा बीमारियों से ग्रसित होती हैं। इसका कारण यही है कि महिलाओं को अपनी सेहत के प्रति लापरवाह माना जाता है। वो घर में बाकी सब की सेहत का ध्यान रखते रखते अपनी सेहत पर ध्यान देना भूल जाती हैं। जबकि हर महीने वो पीरियड्स से गुजरती हैं। ये कोई बीमारी नहीं एक नेचुरल प्रोसेस है, जिसमें किसी तरह की गड़बड़ी गंभीर साबित हो सकती है।

एक नई रिसर्च रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि हमारे देश में लगभग 43 मिलियन (4.3 करोड़) महिलाएं एंडोमेट्रियोसिस से पीड़ित हो सकती हैं। इस एंडोमेट्रियोसिस को आसान भाषा में समझे तो ये पीरियड्स दौरान भारी ब्लीडिंग की जटिल समस्याओं में से एक है। जिसे नज़रअंदाज करना प्रजनन संबंधी समस्याओं को भी जन्म दे सकता है।

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कम उम्र की लड़कियां भी इसकी शिकार

कई वैज्ञानिकों का मानना है कि ये बांझपन जैसी गंभीर दिक्कत को भी बढ़ाने वाली बीमारी हो सकती है। कम उम्र की लड़कियां भी इसकी शिकार पाई जा रही हैं, जो निश्चित ही चिंताजनक है। क्योंकि हमारे देश में अभी भी पीरियड्स किसी टैबो से कम नहीं है। इसे लेकर भ्रांतियां ज्यादा हैं और जागरूकता कम।

जॉर्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ के एक शोध में कहा गया है कि कई अन्य पुरानी बीमारियों के विपरीत, विश्‍व स्तर पर और साथ ही भारत में सरकारों ने एंडोमेट्रियोसिस पर बहुत कम या बिल्कुल ध्यान नहीं दिया है। और यही कारण है कि ये बीमारी तेज़ी से बढ़ती जा रही है। और ज्यादातर यंग लड़कियां इससे पीड़ित भी हैं।

शोधकर्ताओं ने इस बात पर भी अफसोस जताया कि इस विषय पर शोध के लिए भी फंडिंग बेहद कम है। एंडोमेट्रियोसिस पर शोध का बढ़ता समूह मुख्य रूप से उच्च आय वाले देशों (एचआईसी) से है और भारत में इस स्थिति के साथ रहने वाली महिलाओं की वास्तविकता के बारे में बहुत कम जानकारी है।

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महिलाओं को इसके बारे में काफी देर से पता चलता है

इस संस्थान में भारत के वैश्विक महिला स्वास्थ्य कार्यक्रम का नेतृत्व करने वाली वरिष्ठ अनुसंधान फेलो डॉ. प्रीति राजवंशी ने बताया कि मासिक धर्म के दर्द का सामान्य होना और एंडोमेट्रियोसिस पर जागरूकता की कमी से महिलाओं को इसके बारे में काफी देर से पता चलता है। दरअसल अभी भी पीरियड्स के दर्द को हमारे यहां सही से समझा ही नहीं जाता।

डॉ. प्रीति राजवंशी के मुताबिक, “महिलाओं के स्वास्थ्य में एंडोमेट्रियोसिस एक सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता के रूप में गायब है और हम इस क्षेत्र में नीतिगत सिफारिशों और अनुसंधान के व्यापक स्पेक्ट्रम के साथ आने की उम्मीद करते हैं।”

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मेडिकल सुविधाओं तक महिलाओं की पहुंच बहुत कम

एंडोमेट्रियोसिस के परिणाम दीर्घकालिक हैं और इसलिए इस पर जल्दी से कोई ध्यान भी नहीं देता। क्योंकि इसकी समस्या समझ ही बहुत देर से लगती है। हमारे पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं के लिए स्पेस पहले ही बहुत कम है। ऊपर से मेडिकल सुविधाओं तक उनकी पहुंच को बेहतर बनाना सरकार की जिम्मेदारी है।

ऐसा नहीं कि ये बीमारी लाइलाज है, लेकिन इसे एक लंबे समय तक नज़रअंदाज करना खतरनाक जरूर साबित हो सकता है। पीरियड्स की किसी भी समस्या को हल्के में न लें और अपने डॉक्टर से जितना जल्दी हो सके संपर्क करें। सही समय पर इलाज ही बेहतर इलाज है। और ये किसी भी बीमारी को शुरुआती स्टेज पर ही बढ़ने से रोक देता है।

पीरियड्स में दर्द और ब्लीडिंग की समस्या को लेकर कई लोग अदालत तक छुट्टी की गुहार लेकर पहुंचे थे। लेकिन वहां कोई राहत नहीं मिली। दरअसल ये पूरा मामला ही सिर्फ महिलाओं तक केंद्रीत कर दिया जाता है। जबकि एक सच्चाई ये भी है कि जब घर की महिला को कोई भी दिक्कत होती है, तो पूरा घर रुक जाता है, और सब की जिंदगी अस्तव्यस्त हो जाती है। इसलिए अपनी किसी भी समस्या को नजरअंदाज न करें और अपनी समस्या को फौरन समझ कर इलाज के लिए आगे बढ़ें।

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