CJI चंद्रचूड़ ने इंडियन कोस्ट गार्ड को ‘पितृसत्तामक रवैया’ अपनाने के लिए लगाई फटकार

महिलाएं तीनों सेनाओं, सशस्त्र बल और अर्धसैनिक बल में बराबरी के लिए सालों से एक लंबा संघर्ष करती आ रही हैं। इसी कड़ी में इंडियन कोस्ट गार्ड की महिला अधिकारी प्रियंका त्यागी ने सर्वोच्च अदालत में एक याचिका कर तटरक्षक में पात्र महिला ‘शॉर्ट सर्विस कमीशन’ (एसएससी) अधिकारियों को स्थायी कमीशन प्रदान करने का अनुरोध किया है।

इसी मामले पर सुनवाई करते हुए सोमवार, 19 जनवरी को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया सीजेआई चंद्रचूड़ ने नाराजगी जताते हुए कहा कि समुद्री बल को महिलाओं के साथ निष्पक्ष बर्ताव करने वाली एक नीति अवश्य लानी चाहिए। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा इस सुनवाई बेंच में न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी थे।

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

आपको बता दें कि स्थाई कमीशन यानी सेवानिवृत्ति तक सेना में बने रहने की अनुमति की मांग महिलाएं एक लंबे अरसे से करती आ रही हैं। फरवरी 2020 को अपने एक अहम फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं को भी सेना में स्थायी कमीशन देने का आदेश दिया था। जिसके बाद से महिलाओं के लिए एक नई राह खुली थी।

There's no absolute concept of man or woman, says CJI Chandrachud | India  News - Times of India

क्या महिलाएं कमतर इंसान हैं?

सीजेआई की बेंच ने इंडियन कोस्टगार्ड की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल विक्रमजीत बनर्जी से पूछा कि क्या वो इस मामले में पितृसत्तात्मक हो रहे हैं? या वो तटरक्षक में महिलाओं का चेहरा नहीं देखना चाहते? अदालत ने ये भी सवाल किया कि जब भारतीय नौसेना में स्थाई कमीशन का प्रावधान है तो तटरक्षक महिलाओं को स्थायी कमीशन क्यों नहीं दे रहा।

सॉलिसिटर जनरल विक्रमजीत बनर्जी के यह बताये जाने पर कि कोस्टगार्ड में महिला अधिकारियों को 10 प्रतिशत स्थायी कमीशन दिया जा सकता है। सीजेआई चंद्रचूड़ ने हैरानी जताते हुए पूछा कि 10 प्रतिशत ही क्यों…क्या महिलाएं कमतर इंसान हैं?’ देश की सर्वेच्च अदालत ने केंद्र से इस मुद्दे पर लैंगिक रूप से एक तटस्थ नीति लाने को भी कहा है। जो भेदभाव पर आधारित न हो और जिसमें बराबरी पर जोर हो।

महिलाओं के साथ निष्पक्ष बर्ताव किया जाए 

इस सुनावाई के दौरान कई अहम टिप्पणियां भी सुनने को मिली। सीजेआई की पीठ ने स्पष्ट शब्दों में कोर्टगार्ड से कहा, ‘आप नारी शक्ति की बात करते हैं। अब यहां दिखाइए। आपको अवश्य ही एक ऐसी नीति लानी होगी जिसमें महिलाओं के साथ निष्पक्ष बर्ताव किया जाए।’ पीठ ने पूछा कि क्या केंद्र तीनों सशस्त्र बलोंथलसेना, वायुसेना और नौसेनामें महिलाओं को स्थायी कमीशन प्रदान करने के शीर्ष अदालत के फैसलों के बावजूद अब भी ‘पितृसत्तामक रवैया’ अपना रही है।

Indian Armed Forces now have 9,449 women personnel, most in the Army: Govt  | Defence - Business Standard

ध्यान रहे कि इस साल गणतंत्र दिवस की थीम में भी महिला शक्ति पर जोर दिया गया था। पहली बार कर्तव्य पथ की परेड में तीनों सेनाओं और अन्य बलों की महिला टुकड़ी के नेतृत्व में परेड देखने का अवसर समस्त देशवासियों को मिला था। ऐसे में महिला अधिकारियों से कोस्टगार्ड में इस् तरह का भेदभाव अदालत के साथ ही पूरे देश के लिए भी एक हैरानी का विषय है।

स्थायी कमीशन की लंबी लड़ाई

ज्ञात हो कि महिलाओं के स्थायी कमीशन की लड़ाई बड़ी लंबी रही है। साल 2010 में दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था कि महिला अधिकारियों को भी सेना में परमानेंट कमीशन मिलना चाहिए। इसके बाद दिल्ली हाई कोर्ट के इसी फैसले को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। जिसे लेकर साल 2020 के फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट के निर्णय बरक़रार रखा था।

इसमें कोई दो राय नहीं महिलाएं कितनी भी तरक्की कर लें, उनके संघर्ष की राह हमेशा लंबी ही रही है। अदालत के इस फैसले से पहले सेना में महिला अधिकारियों को केवल दो शाखाओं जज एडवोकेट जनरल और शिक्षा कोर में ही स्थायी कमीशन मिलता था। इसके अलावा बाकी सभी जगह उनकी तैनाती शॉर्ट सर्विस कमीशन के तहत होती थी। इसमें महिला अधिकारियों को शुरू में पांच वर्ष के लिए लिया जाता था, जिसे बढ़ा कर 14 वर्ष तक किया जा सकता था। 14 साल के बाद उन्हें आर्मी से ऑप्ट आउट (रिटायर) करना ही होता था।

शॉर्ट सर्विस कमीशन के चलते महिला अधिकारी निचली रैंक्स तक ही सीमित रह जाती थीं, उन्हें ऊंची पोस्ट्स, जिन्हें कमांड पोस्ट कहा जाता है वहां तक पहुंचने का मौका ही नहीं मिलता था। इसके अलावा 20 साल की सेवा पूरी न होने के कारण वे रिटायरमेंट के बाद पेंशन बेनिफिट से भी वंचित रह जाती थीं। दूसरी ओर पुरुषों को परमानेंट कमीशन के लिए सभी अवसर मिलते हैं। लेकिन महिलाओं ने कई सालों तक अपने संघर्ष को जारी रखते हुए एक बड़ी जीत हासिल की थी। और उम्मीद है कि जल्द ही कोस्टगार्ड भी अपने यहां महिलाओं को स्थायी कमीशन देगा।

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