पश्चिम बंगाल का संदेशखाली बीते कई दिनों से सुर्खियों में बना हुआ है। महिलाओं पर अत्याचार और शोषण–उत्पीड़न का मामला लगातार राजनीति की भेंट चढ़ता दिखाई दे रहा है। पक्ष–विपक्ष के आरोप–प्रत्यारोप के बीच असल मुद्दे की गंभीरता कहीं पीछे जाती दिखाई दे रही है। एक ओर ममता सरकार लगातार अपने नेता शाहजहां शेख़ को बचाती नज़र आ रही है, तो वहीं बीजेपी ठीक आम चुनावों से पहले इस मुद्दों को किसी कीमत पर अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहती।
पश्चिम बंगाल के उत्तर 24-परगना ज़िले में बांग्लादेश की सीमा से सटे संदेशखाली गांव को इससे पहले राष्ट्रीय मीडिया में शायद ही कभी इतनी सुर्खिया मिली हों। तृणमूल कांग्रेस के नेता शाहजहां शेख और उसके दो ताकतवर सहयोगियों के कथित अत्याचारों और यौन उत्पीड़न के ख़िलाफ़ गांव की महिलाओं का विरोध कोई छोटी बात नहीं है। तृणमूल नेता पर स्थानीय लोगों की ज़मीन जबरन हड़पने और महिलाओं के साथ अत्याचार और बलात्कार करने जैसे गंभीर आरोप लगे हैं।
महिलाओं ने मीडिया के सामने नेताओं पर लगाए आरोप
सत्तापक्ष इसे भले ही एक साजिश करार दे रही हो लेकिन महिलाओं का मीडिया के सामने आकर इन नेताओं पर आरोप लगाना निश्चित ही जांच का विषय है। इस मामले में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के साथ ही पुलिस ने भी बलात्कार के आरोपों को निराधार बताते हुए इसे ज़मीन की लीज के एवज दो साल से पैसों का भुगतान नहीं होने से उपजी नाराजगी करार दिया है।
राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने खुद बीते गुरुवार को विधानसभा में कहा कि ईडी शाहजहां शेख़ को निशाना बना कर संदेशखाली में घुसी थी। उसी समय से अल्पसंख्यकों और आदिवासियों के बीच गड़बड़ी फैलाई गई थी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने वहां अपना ठिकाना बनाया है। ममता बनर्जी ने चेहरा ढके महिलाओं के मीडिया बयानों के जांच की बात भी कही।
दूसरी ओर बीजेपी के नेता और महिला आयोग भी संदेशखाली पहुंचा। जहां से और तमाम विवादों की खबर है। सीपीएम की केंद्रीय समिति की सदस्य देवलीना हेंब्रम के नेतृत्व में भी एक प्रतिनिधिमंडल के संदेशखाली जाने की खबर है। मीडिया खबरों के मुताबिक फ़िलहाल यह गांव एक ऐसे क़िले में तब्दील हो गया है, जहाँ पुलिस प्रशासन की मर्जी के बिना परिंदा तक पर नहीं मार सकता।
शाहजहां शेख़ के घर ईडी के छापे से शुरू हुआ मामला
ध्यान रहे कि ये पूरा मामला बीते महीने राशन घोटाले के सिलसिले में तृणमूल कांग्रेस नेता शाहजहां शेख़ के घर ईडी के छापे से शुरू हुआ था। तब कथित तौर पर पार्टी समर्थकों के हमले में ईडी के तीन अधिकारी घायल हो गए थे। शाहजहां उसी दिन से फ़रार है। हाईकोर्ट ने भी इस मामले पर हैरानी जताते हुए कहा है कि ऐसा कैसे हो सकता है कि मुख्य आरोपी अभी तक पुलिस की गिरफ्त से बाहर है, पकड़ा नहीं जा सका है। विपक्षी दल पहले ही इस बात को लेकर सत्तारूढ़ पार्टी को कटघरे में खड़ा करते हुए सवाल कर रहे हैं।
बहरहाल, संदेशखाली की महिलाओं के शोषण–उत्पीड़न का मामला एक गंभीर मुद्दा है, जिस पर बिना किसी दबाव और प्रभाव के जांच होनी ही चाहिए। और उससे भी जरूरी आरोपी का पहले पकड़ा जाना है, जो किसी भी राज्य में सुरक्षा व्यवस्था के लिहाज़ से सबसे ज्यादा जरूरी है। वैसे ये विडंबना ही है कि जब बात मणिपुर की हुई, तो सत्ताधारी पार्टी बीजेपी चुप्पी साधे नज़र आई और अब जब बात संदेशखाली की है, तो पार्टी के नेता से लेकर महिला आयोग की सक्रियता भी देखने को मिल रही है।
वहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री जो खुद एक महिला भी हैं, उनका जिस तरह से इस पूरे मामले पर रिएक्शन रहा है, वो भी कम चौकानें वाला नहीं है। एक मुखर महिला नेता बिना जांच के ही इस गंभीर घटना को साजिश बताने में लग जाए, तो इससे समझा जा सकता है, कि राजनीति में कभी भी कोई अपनी सुविधानुसार बदल सकता है।