Mutual Funds की ओर महिलाएं बढ़ा रहीं कदम, निवेश से होगा आर्थिक सशक्तिकरण

महिलाएं कई बार पढ़लिख कर नौकरी तो करने लगती हैं, लेकिन उनकी कमाई अक्सर सही निवेश तक पहुंच नहीं पाती। ज्यादातर महिलाएं इंवेस्टमेंट से दूरी बनाकर रखती हैं। और इसकी बड़ी वजह ये है कि उन्हें पैसे को मैनेज करने की आदत ही शायद नहीं है। वो कमाती जरूर हैं, लेकिन निवेश के बारे में न सोचकर उस पैसे को एफडी या घर खर्च में ही लगा देती हैं।

हालांकि अब बीते कुछ समय में महिलाएं बाकी क्षेत्रों की तरह ही निवेश के क्षेत्र में भी आगे बढ़ी हैं। उन्होंने अपने पैसे से पैसा बनाना शुरू किया है। और इसके लिए उन्हें म्यूचुअल फंड सबसे सही च्वॉइस लगता है। एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड्स इन इंडिया (AMFI) के ताजा डेटा के अनुसार, इस साल फरवरी में म्यूचुअल फंड्स का कुल एसेट अंडर मैनेजमेंट (AUM) 50 लाख करोड़ रुपये के पार पहुंच गया है।

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म्यूचुअल फंड्स में महिलाओं की दिलचस्पी

आपको बता दें कि पिछले कुछ समय से महिलाओं की दिलचस्पी म्यूचुअल फंड्स में अधिक देखने को मिल रही है। एक डेटा के मुताबिक महिला निवेशकों की हिस्सेदारी मार्च 2017 की 15 प्रतिशत से बढ़कर दिसंबर 2023 में 21 प्रतिशत हो गई है। इसमें करीब 50 प्रतिशत महिला निवेशक 25-44 आयु वर्ग से हैं।

सेबी चेयरपर्सन माधवी पुरी बुच के मुताबिक अधिकांश महिला म्यूचुअल फंड निवेश नियमित योजना के जरिये और लंबे समय तक निवेश करती हैं। महिला म्यूचुअल फंड डिस्ट्रीब्यूटर्स की संख्या भी बढ़कर करीब 42 हजार हो गई हैं और यह करीब एक लाख करोड़ रुपये की संपत्तियों का प्रबंधन करती हैं। इसे आसान भाषा में समझें, तो म्यूचुअल फंड में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी उनके बढ़ते आर्थिक सशक्तिकरण और अधिक वित्तीय साक्षरता का प्रमाण है।

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मार्केट रिस्क के साथ महिलाएं हो रहीं सशक्त

आपको मालूम हो कि म्‍यूचुअल फंड कई प्रकार के होते हैं। इसमें इक्विटी फंड्स (Equity Funds), डेट फंड्स (Debt Funds), बैलेंस या हाइब्रिड फंड्स (Hybrid Funds) और सॉल्यूशन ओरिएंटेड फंड (Solution-Oriented Funds) शामिल होते हैं। ज्यादातर लोग इक्विटी फंड में निवेश करते हैं। इसमें निवेश शेयर बाजार में उतारचढ़ाव के हिसाब से घटता बढ़ता रहता है।

मार्केट रिस्क के साथ महिलाएं अब खुद को और भी सशक्त बना रही हैं। वो अपने पैसे को खुद की सुझबूझ से इस्तेमाल कर रही हैं। वैसे आज भी ऐसे घरों की कमी नहीं है, जहां महिलाएं कमाती तो हैं, लेकिन उनके पैसे उनके घरवाले ही मैनेज करते हैं। पैसे के मामलों में अक्सर महिलाओं को कमतर ही आंका जाता रहा है।

हालांकि अब जमाना बदल रहा है, और महिलाएं आगे आ रही हैं। खुद के लिए इस पुरुष वर्चस्व वाली दुनिया में जगह बनाने के साथ ही कदम से कदम मिला कर भी चल रही हैं। ये नारी सशक्तिकरण की सही पहचान है। क्योंकि महिलाएं जब तक आर्थिक रूप से सशक्त नहीं होगीं। वे चाहें जितना संघर्ष कर लें, कभी पूरी तरह आज़ाद नहीं हो पाएंगी।

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