उत्तराखंड के बहुचर्चित अंकिता भंडारी हत्याकांड मामले में पौड़ी की एक अदालत ने शुक्रवार (30 मई) को भारतीय जनता पार्टी के पूर्व नेता विनोद आर्य के बेटे पुलकित समेत तीन आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है.
इंंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश रीना नेगी ने तीनों पर 50-50 हजार का आर्थिक जुर्माना भी लगाया गया है.
मालूम हो कि 19 वर्षीय अंकिता भंडारी पौड़ी गढ़वाल के एक रिजॉर्ट में काम करती थीं और 18 सितंबर 2022 में उनकी इसलिए हत्या कर दी गई थी, क्योंकि कथित तौर पर उन्होंने किसी वीआईपी मेहमान को ‘विशेष सेवाएं’ (सेक्स वर्क के लिए इस्तेमाल होने वाला शब्द) देने से इनकार कर दिया था.
रिसॉर्ट के मालिक और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के निष्कासित नेता विनोद आर्य के बेटे पुलकित आर्य और उनके स्टाफ सदस्यों- सौरभ भास्कर और अंकित गुप्ता को अंकिता की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. अंकिता की हत्या के छह दिन बाद उसका शव एक नहर से बरामद किया गया था.
इस मामले में महिला और मानवाधिकार संगठनों की संयुक्त फैक्ट फाइंडिंग टीम ने 2023 में एक रिपोर्ट भी जारी की थी, जिसमें एसआईटी पर जांच में जानबूझकर लापरवाही बरतने समेत वनंतरा रिजॉर्ट पर बुलडोज़र चलाने, पुलिस रिमांड की मांग न करने और राजस्व पुलिस से लेकर उत्तराखंड पुलिस तक के गोलमोल भूमिका पर सवाल खड़े किए गए थे.
रिपोर्ट के मुख्य बिंदु
-अंकिता 18 सितंबर से लापता थी, लेकिन जब 19 सितंबर को उसके पिता को इस बारे में पता चला तो वे कई थानों के चक्कर लगवाते रहे। आखिरकार 20 जनवरी को दोपहर 2 बजे राजस्व पुलिस अधिकारी विवेक कुमार ने उसकी रिपोर्ट दर्ज की। तब अंकिता के पिता को बताया गया कि पुलकित आर्या ने इस मामले में पहले ही विस्तृत गुमशुदगी की रिपोर्ट दे दी है।
-इसके बाद भी अंकिता के पिता तेजी से जांच की मांग को लेकर दर-दर की ठोकरें खाते रहे। 22 सितंबर की शाम को पौड़ी के जिलाधिकारी ने रिपोर्ट का संज्ञान लिया और राज्य महिला आयोग और विधानसभा अध्यक्ष तथा देहरादून के वरिष्ठ अधिकारियों से व्यक्तिगत रूप से संपर्क करने के बाद मामले को लक्ष्मण झूला की नियमित पुलिस को सौंप दिया गया. 23 सितंबर को तीनों आरोपियों पुलकित आर्य, सौरभ भास्कर और अंकित गुप्ता को गिरफ्तार कर लिया गया.
-अंकिता का शव 24 सितंबर को बरामद हुआ था और उसी दिन एम्स ऋषिकेश में पोस्टमार्टम हुआ था. रिपोर्ट में मौत से पहले शरीर पर चोटों के निशान पाए गए थे, लेकिन यौन उत्पीड़न की बात से इनकार किया गया था, क्योंकि उसके निजी अंगों पर कोई चोट नहीं थी. हालांकि, सिर्फ इसी आधार पर यौन हिंसा की बात से इनकार नहीं किया जा सकता. इसके बाद पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों ने अंकिता के अंतिम संस्कार को एक नाटक बना दिया। परिवार पर दबाव बनाकर 25 सितंबर को उसका अंतिम संस्कार कर दिया. उसकी मां आखिरी बार उसका चेहरा भी नहीं देख पाई.
आपराधिक न्याय प्रणाली का पतन और सबूतों को नष्ट करने की छूट
-इस मामले में आपराधिक न्याय प्रणाली का पतन और सबूतों को नष्ट करने की छूट भी साफ दिखाई देती है। 23 सितंबर की रात को सत्तारूढ़ भाजपा विधायक रेनू बिष्ट, जो इस इलाके में एक रिसॉर्ट की मालकिन भी हैं, के नेतृत्व में घटनास्थल समेत कीमती सबूतों को नष्ट कर दिया गया. इसमें पुलिस की लापरवाही और दुर्भावना साफ दिखाई देती है. पुलिस ने घटनास्थल को सील क्यों नहीं किया? सबूत नष्ट करने के लिए बिष्ट के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई? उन्हें रिसॉर्ट पर सरकारी बुलडोजर चलाने की इजाजत किसने दी?
-इस मामले में वह वीआईपी कौन था, जिसे विशेष सेवा देने की बात हो रही थी? जवाब में पुलिस ने कहा कि वीआईपी शब्द का इस्तेमाल प्रेसिडेंशियल सुइट में ठहरने वाले लोगों के लिए किया जा रहा था। यहां सवाल उठता है कि क्या यह सिर्फ बोलचाल का शब्द है या कोई ताकतवर व्यक्ति, राजनेता या कोई अन्य प्रभावशाली व्यक्ति.
-फैक्ट-फाइंडिंग टीम ने गवाहों को अब तक कोई सुरक्षा न मिलने पर भी चिंता जताई है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, रिसॉर्ट के कर्मचारी अभिनव, कुश और अन्य तथा अंकिता का दोस्त पुष्प इस मामले में अहम गवाह हैं. इन लोगों ने हत्या की कड़ियों को जोड़ने में मदद की है. धारा 164 और गवाहों के बयानों के बावजूद पुलिस का यह कहना कि उनमें से किसी ने भी किसी तरह की धमकी या धमकी की बात नहीं कही है, पर्याप्त नहीं है और इसलिए सुरक्षा नहीं दी गई, यह भी पर्याप्त नहीं है.
महिलाओं के यौन उत्पीड़न अधिनियम 2013 के क्रियान्वयन में विफलता
-यह उक्त रिसॉर्ट में कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न अधिनियम 2013 के क्रियान्वयन में विफलता को दर्शाता है. रिसॉर्ट में मौजूद लगभग सभी कामकाजी महिलाओं को इस अधिनियम के बारे में जानकारी तक नहीं थी. यही कारण है कि वहां कोई आंतरिक शिकायत समिति नहीं है. पर्यटन विभाग के अतिरिक्त सचिव के पास होटल व्यवसाय द्वारा इस कानून की अनदेखी करने का कोई जवाब नहीं था.
-राज्य महिला आयोग ने भी इस मामले में कोई सक्रिय भूमिका नहीं निभाई, सिवाय इसके कि जब अंकिता के पिता शिकायत लेकर उनके पास पहुंचे तो उन्होंने फोन करके टाल-मटोल कर दिया. इसके बाद ऐसी घटनाओं में फंसी महिलाओं के लिए किसी समाधान पर कोई चर्चा नहीं हुई. आयोग ने कामकाजी महिलाओं के हितों को सुनिश्चित करने के लिए सरकार से कोई संवाद नहीं किया.
-उत्तराखंड पुलिस के भीतर का विरोधाभास भी यहां साफ तौर पर दिखाई दिया. जब अंकिता के पिता शिकायत दर्ज कराने गए तो उन्हें यह कहकर मना कर दिया गया कि यह उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। फैक्ट फाइंडिंग टीम को भी रिसॉर्ट में जाने से मना कर दिया गया. लेकिन बिष्ट को पूरी छूट दी गई.
– व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के लिए सरकारी फंडिंग की कमी इस मुद्दे को और व्यापक आयाम देती है. अंकिता सरकारी वित्तपोषित व्यावसायिक शिक्षा पाठ्यक्रम में दाखिला नहीं ले सकी और इसलिए होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई पूरी नहीं कर सकी. फीस के अभाव में उसे पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी. अंकिता जैसी कई लड़कियां हैं, जो आर्थिक मजबूरी के कारण अपने सपने पूरे नहीं कर पातीं और किसी अपराध का शिकार हो जाती हैं.
500 पन्ने का आरोपपत्र
गौरतलब है कि एसआईटी जांच के बाद अभियोजन पक्ष की ओर से अदालत में 500 पन्ने का आरोपपत्र दाख़िल किया गया. क़रीब दो साल 8 माह तक चले ट्रायल में अभियोजन पक्ष की ओर से विवेचक समेत 47 गवाह अदालत में पेश किए गए.
बीती 19 मई को अभियोजन पक्ष के अधिवक्ता विशेष लोक अभियोजक की ओर से बचाव पक्ष की बहस का जवाब दिया गया और इसी के साथ सुनवाई पूरी हो गई थी.
अदालत ने दोनों पक्षों की बहस और दलीलें सुनने के बाद फ़ैसला सुनाने के लिए 30 मई की तारीख निर्धारित की थी.