International Daughters Day 2023 : किस्सा बाप-बेटी की तकरार और प्यार का

आपने अक्सर देखा-सुना होगा कि एक लड़की को सबसे ज्यादा डर शायद उसके पिता से लगता है। वही उसके आनेजाने या आदत, आचरण पर टोकाटाकी करते हैं। लेकिन हमारी आज की कहानी है काव्या की, एक ऐसी लड़की जिसे उसके पिता इस दुनिया में सबसे ज्यादा प्यार करते हैं और ये प्यार ही है, जो काव्या को खुलकर उनके सामने बहस या तकरार की इज़ाजत भी देता है। काव्या और उसके पापा अमृत की ये कहानी बिटिया दिवस को समर्पित है।

काव्या एक मध्यम वर्गीय परिवार की इकलौती बेटी है। उसकी मां बचपन में ही उसका साथ छोड़ इस दुनिया को अलविदा कह देती है। काव्या की दादी यानी अमृत की मां उन्हें बारबार दूसरी शादी करने को मजबूर करती हैं, लेकिन अमृत जी हर बार अपनी मां को ना कहकर निराश कर देते हैं।

काव्या की मां को गुजरे करीब दस साल हो चुके हैं। छोटी काव्या अब बड़ी होकर कॉलेज जाने लगी है। उसके पिता हर सुबह उसे कॉलेज छोड़ने और वापसी में फिर साथ लाने भी जाते हैं। काव्या उनसे कई बार कहती, “पापा आप ऐसे कॉलेज मत आया करो, मेरे सारे दोस्त मुझे पापा की परी कहकर चिढ़ाते हैं।

अमृत जी इस पर मुस्कुराकर कहते हैं, “हां तो तुम हो पापा की परी, इसमें बुरा क्या मानना।काव्या अमृत जी के जवाब से बहुत खुश तो नहीं थी, लेकिन उसे ये जरूर पता था कि उसके पिता उससे बहुत प्यार करते हैं। इसलिए वो आगे बिना कुछ बोले अपने कमरे में चली गई। काव्या की दादी ये सब चुपचाप देख रहीं थी और इस बापबेटी की जोड़ी को तोड़ना चाह रहीं थीं, जिससे अमृत जी उनकी शादी की बात मान लें।

हमें कुछ हो गया, तो इसका क्या होगा?

एक दिन दादी ने काव्या के लिए अमृत को एक रिश्ता सुझाया। लड़का एनआरई था और अमेरिका में रहता था। सुननेदेखने में खानदान तो अच्छा था, लेकिन दादी जानती थी कि इस शादी के बाद काव्या परदेस से अपने देस जल्दी नहीं लौट पाएगी। अमृत ने फिलहाल तो अपनी मां को इस रिश्ते के लिए ये कहकर मना कर दिया कि काव्या अभी बच्ची है, उसे पढ़ने दो, आगे बढ़ने दो। लेकिन जब दादी ने इमोशनल होकर कहा, “देख अमृत तेरे और मेरे अलावा है ही कौन इस बच्ची का। कल को हमें कुछ हो गया तो इसका क्या होगा।ये सुनकर अमृत के मन में एक डर तो बन ही गया।

कुछ दिनों बाद दादी एक और रिश्ता लेकर आईं। इस बार लड़का अपने दूर के रिश्तेदार का ही था, जो एक अच्छी नौकरी करता था। दादी ने इस बार अमृत को शादी के लिए नहीं सिर्फ मिलने मिलाने के लिए राज़ी होने को कहा। अमृत ने भी सोचा, चलो हां कह देते हैं, अभी कौन सी शादी हो रही है। लड़का और परिवार काव्या को देखने आए और उन्होंने काव्या को पहली नज़र में ही पसंद कर लिया। काव्या को भी लड़का अच्छा लगा, सो उसने हां न सही तो ना भी खुलकर नहीं कहा। लेकिन अमृत जी ने शादी से पहले काव्या के कॉलेज खत्म होने की शर्त रख दी।

शादी और बर्बादी

अब धीरेधीरे समय बीता और काव्या का कॉलेज खत्म हो गया। लड़के वालों को दादी ने फिर बुलाया इस बार बात पक्की हो गई औऱ काव्या निशांत की हो गई। दोनों शुरुआत में खूब खुश थे। साथ घूमनाफिरना, खानाखिलाना, प्यारमोहब्बत सब सही था, लेकिन फिर निशांत के घरवालों ने अपना असल रंग दिखाना शुरू किया। पापा की परी अब निशांत के घर की बहुरानी नहीं नौकरानी बन गई थी। काव्या सब कुछ चुपचाप सहती रही क्योंकि वो अपने पापा को दुखी नहीं देखना चाहती थी।

उधर, दादी ने अपना वास्ता देकर अमृत जी को भी शादी के लिए मना लिया और तय हुआ कि एक चुपचाप शांती से शादी होगी। दादी ने काव्या को अमृत की खुशी का हवाला देते हुए अपने प्लान में शामिल कर लिया। बस फिर अमृत जी की भी शादी हो गई और वो भी अपनी गृहस्थी में खो गए। दादी ने काव्या के परिवार के विदेश जानेे की झूठी खबर अमृत को दी और काव्या को कहा कि अगर वो अपने पापा से दूर नहीं होगी, तो उसके पापा कभी अपनी जिंदगी में आगे नहीं बढ़ पाएंगे।

इधर, बेटीबाप के लिए और बापबेटी के लिए एकदूसरे से दूर होते गए। वहीं काव्या के ससुराल में दिनप्रतिदिन मामला और बिगड़ता चला गया। एक दिन उसकी सास ने उसे खूब मारा और उसी दिन अमृत जी का मन बेटी के लिए बेचैन हो गया। अमृत जी ने काव्या को फोन लगाया, काव्या ने फोट काट दिया। उन्हें लगा वो अपने जीवन में व्यस्त होगी। उन्होंने फिर अगले दिन फोन लगाया काव्या ने पिर फोन काट दिया। इस बार अमृत जी से रहा नहीं गया और वो काव्या से मिलने उसके विदेशी घर पहुंच गए, ये वो झूठा पता था, जो काव्या ने निशांत के किसी रिश्तेदार का अपना बताकर दिया था।

बापबेटी की खुशी

अमृत जी ने जैसे ही दरवाज़े की घंटी बजाई, सामने से कोई औरत आई और उसने अगले ही पल में काव्या और उसके ससुराल वालों की सारी कहानी बयां कर दी। दरअसल, ये औरत कोई और नहीं काव्या की सास की ननद ही थी, जो शादी में अमृत जी के खास अंदाज़ की मुरीद हो गई थी। इसलिए उसे अच्छे से सब याद था। अब अमृत जी सदमे में घर लौटे और तुरंत एयरपोर्ट से ही काव्या के घर पहुंच गए। उन्होंने देखा कि बेटी बाहर साफसफाई कर रही है, उसकी हालत किसी कामवाली से भी बदतर है। उन्होंने काव्या से पूछा तो उसने बातों को गोलमोल घूमा दिया।

अब तक अमृत जी कहानी समझ चुके थे। उन्होंने काव्या के ससुरालवालों से इजाज़त ली और कुछ दिन काव्या को अपने घर ले जाने को कहा। काव्या अपने पिता के साथ घर आई। अब अमृत जी फूटफूट कर रोने लगे और उन्होंने बेटी से सवाल किया, “काव्या बेटा, तुन तो पापा की परी थी, फिर इतने दुख अकेले क्यों झेलती रही, हमें कुछ बताया क्यों नहीं।काव्या कुछ नहीं बोली बस रोती रही। इतने में दादी आ गईं और उन्होंने काव्या की सौ बुराइयां गिना दीं।

काव्या रोते हुए अपने कमरे में चली गई। थोड़ी देर बाद अमृत फिर काव्या के पास गए और बोले, “बेटा, क्या हुआ, बता न। देख तुझे मेरी कसम है, अगर नहीं बताएगी, तो मैं अभी से न खाना खाऊंगा, न पानी पिऊंगा।काव्या जानती थी, उसके पिता बात के पक्के हैं, इसलिए रोते हुए बोली, “पापा, मैं ठीक हूं, बस आपकी खुशी चाहती थी, इसलिए नहीं बताया।अमृत जी बोले, “अरे पगली, तेरी खुशी में ही तो मेरी खुशी है।तो काव्या तुरंत बोली, “बस आपकी खुशी में भी मेरी खुशी है।बापबेटी खूब रोए और फिर काव्या ने अपने पापा से निशांत और उसके घरवालों का किस्सा खोला। वो नाराज़ भी हुई कि आपने क्या देखकर शादी की। एकबार घरखानदान का पता तो लगा लेते। अमृत जी भी बोले, तुुम भी तो निशांत को पसंद करती थी। तुमने कभी उससे कुछ क्यों नहीं पूछा। थोड़ी देर बहस होने के बाद अमृत जी के सामने उनकी मां की सच्चाई भी आई।

काव्या का फैसला, अमृत का साथ

अमृत जी ने काव्या को यहीं अपने साथ अपने घर रखने का फैसला किया और अपनी बीवी के सामने भी ये खुलकर कहा कि उनकी पहली प्राथमिकता आज भी काव्या ही है। दादी से तो सब नाराज़ ही थए, लेकिन उनकी उम्र का लिहाज़ करते हुए किसी ने कुछ नहीं कहा। यहां काव्या ने भी एक फैसला लिया कि वो अपने पापा के घर आएगी, लेकिन ससुरालवालों को उनकी गलतियों का हिसाब गिनवाने के बाद।

काव्या इस बार अपने ससुराल एक नए अवतार में गई। सासससुर की हर गलत बात का विरोध किया। उन्हें प्यार और गुस्से दोनों से समझाने की कोशिश की। फिर जब बात नहीं बनी, तो उसने अपनी आज़ादी चुनी और अपने पिता के घर वापस आ गई। पिता ने काव्या को आगे पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। काव्या ने आगे पढ़ाई की और एक अधिकारी बन गई। उसके ससुराल तक ये खबर पहुंचते ही ससुराल वाले मांफी मांगने काव्या के घर पहुंचे लेकिन काव्या ने एक बार फिर अपने पिता की सुनी और उनके साथ घर वापस जाने से मना कर दिया।

ऐसा नहीं था कि काव्या की जिंदगी अब आसान थी लेकिन उसके पापा उसके साथ थे, जो हर रोज़ उसकी डांट को अपना टॉनिक समझ खुशीखुशी खा लेते थे और उससे पहले से भी ज्यादा प्यार करने लगते थे। ये बापबेटी की रिश्ता ही था, जो काव्या को नरक से निकाल कर स्वर्ग तक ले गया। उसने अपनी जिंदगी की अहमियत समझी और दूसरों के लिए भी प्रेरणा बनी।

नोट: ये महज़ एक काल्पनिक कहानी है। इसका किसी व्यक्ति या संदर्भ से कोई लेनादेना नहीं है।

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