उर्दू शब्द शाहीं का मतलब पंछी होता है और पंछी का काम ही उड़ना है, कुछ ऐसी ही उड़ान हमारी शाहीन मलिक की भी है, जिनके पंखों को कई बार काटने की कोशिश की गई, लेकिन हर बार उन्होंने अपनी हिम्मत और हौसले से पहले से भी ऊंची उड़ान भरी। शाहीन एक एसिड अटैक सर्वाइवर हैं, जो आज अपने जैसे सैंकड़ों सर्वाइवर्स की जिंदगी बदल रही हैं। शाहीन ने जिंदगी में कभी हार न मानने की कसम खाई है, उनका ये जज़्बा सैकड़ों जिंदगी से निराश लोगों के लिए प्रेरणा है।
शाहीन बताती हैं कि उन्हें बचपन से कुछ अलग करना था, वो भीड़ से अलग सोचती थीं। जब लोग महिलाओं के लिए गलत बोलते थे या कुछ गलत करते थे, तो उन्हें ये बर्दास्त नहीं होता था। वो हमेशा से इन लोगों के लिए कुछ करना चाहती थीं, कुछ ऐसा जिससे लोग उन्हें याद रखें। शाहीन ने एक छोटी सी उम्र में ही अपना घर छोड़ दिया और इसकी वजह थी, उनके घरवालों की रूढ़िवादी सोच, जो लड़कियों पर कई तरह की पाबंदियां लगाती थी। शाहीन को पिंजरे की कैद मंजूर नहीं थी और इसलिए उन्होंने बाहर के खुले चुनौती भरे आसमान को चुना।
शाहीन को पिंजरा पसंद नहीं
घर से निकल कर शाहीन ने एमबीए में एडमिशन लिया और अपने खर्चों को मैनेज करने के लिए नौकरी भी शुरू की। बस यही वो समय थे जब उनकी बोल्डनेस और उनके काम की तारीफ ने उनके साथ काम कर रहे कुछ लोगों को उनका दुश्मन बना दिया। ये दुश्मनी शाहीन को बहुत भारी पड़ी और उन पर साल 2009 में एसिड अटैक हुआ। उनसे उनकी पहचान, उनका चेहरा सब छीन गया। शाहीन एक बार फिर अपने मां–बाप के घर पहुंची, लेकिन इस बार वो पहले की तरह सशक्त नहीं थीं। उनकी हिम्मत टूट चुकी थी, उनके सपने मर चुके थे। उन्हें अपने चेहरे से घीन आ रही थी और वो इस कश्मकश में तीन साल अपने ही घर के कमरे में कैद रहीं।
शाहीन ने समाज के लोगों से ताने भी सुने, उन्हें कई बार लोगों ने उन पर हुए एसिड अटैक के लिए जिम्मेदार ठहराया, लेकिन शाहीन तब सब कुछ चुप चाप सुनती रहीं। एक समय वो भी आया जब शाहीन इतना परेशान हो गईं कि उन्होंने आत्महत्या तक करने की सोच ली। लेकिन यहां किस्मत को कुछ और मंजूर था और वो बच गईं। बस, फिर क्या था, एक बार फिर शाहीन ने अपने संघर्षों में रास्ते तलाशने की कोशिश की और सूरमा बन कर निकलीं। उन्होंने अपनी कमज़ोरी को ही अपनी ताकत बना लिया। एसिड अटैक के शिकार लोगों की मदद की और खुद की खुशी इसमें तलाश ली।
अपने साथ ही दूसरों के इंसाफ की भी लड़ाई लड़ रही हैं शाहीन
शाहीन कहती हैं कि अल्लामा इक़बाल की पंक्तियां “तू शाहीं है परवाज़ है काम तेरा, तिरे सामने आसमाँ और भी हैं” उन्हीं के लिए बनी हैं और उन्होंने न सिर्फ इसे पढ़ा है, बल्कि अपने जीवन में उतारने के साथ ही दूसरों को भी मोटिवेट किया है। शाहीन आज हज़ारों लाखों लोगों के लिए अंधेरे में चमकने वाले किसी जुगनू से कम नहीं हैं। शाहीन का केस अभी भी अदालत में है, बावजूद इसके वो दूसरों के मुकदमों में उनकी मदद करती हैं, दूसरे लोगों के लिए इंसाफ की लड़ाई लड़ रही हैं। उन्हें कानून के साथ मेडिकल और बाकी जरूरी सुविधाएं मुहैया करवा रही हैं।
शाहीन की अब तक 25 सर्जरी हो चुकी है, और वो कहती हैं कि उन्हें अपनी आंखों के लिए आजीवन दवाइयां खानी है। ये दवाइयां और सर्जरी किसी भी एसिड अटैक सर्वाइवर की जिंदगी का सबसे बड़ा दर्द है। क्योंकि ये जितनी महंगी होती हैं, उतना ही दर्द भी देती हैं। एक समय वो भी था जब शाहीन न चल पाती थी, न खाना खा पाती थी। उन्हें सूइयों से नफरत हो गई थी। लेकिन वो कहती हैं कि अब यही उनके जीवन की सच्चाई है, जिसे उन्होंने खुद भी स्वीकार लिया है, और बाकि लोगों को भी स्वीकारने की सलाह देती हैं।
शाहीन समाज के लोगों से कहना चाहती हैं, कि वो एसिड अटैक सर्वाइवर्स को भी अपने जैसा समझें, उन्हें अलग–थलग न करें क्योंकि उनका ये बर्ताव उन लोगों को और पीड़ा देता है। एसिड अटैक किसी का आत्मविश्वास तो तोडता ही है ये समाज का रवैया उसको रोज़ टूटने पर मजबूर कर देता है। हमारे कानून भी एसिड अटैक को लेकर गंभीर हैं, लेकिन बाकि कानूनों की तरह इन्हें भी सालों लग जाते हैं इंसाफ पाने में। जिसकी कीमत भी इन सर्वाइर्स को ही चुकानी पड़ती है। ऐसे में हमें ही इनका सहारा बनना है, इनकी हिम्मत बढ़ाना है, जिससे इनकी जिंदगी दोबारा पटरी पर लौट सके।