हम अक्सर सुनते हैं प्यार और जंग में सब जायज़ है, लेकिन ये सब किस हद तक जायज़ है ये कोई नहीं बताता। क्योंकि हमारे समाज में जायज़ की लोगों ने अपने-अपने हिसाब से परिभाषा बना रखी है। कोई कहता है अरे यार प्यार है और साथ रहना है, तो इतना तो एडजस्ट करना ही पड़ता है। तो वहीं कोई कहता है कि ये तो सब करते हैं, तुम्हें भी करना ही पड़ेगा। लेकिन क्यों का किसी के पास कोई लॉजिक जवाब नहीं होता सिवाय इसके कि ये रिश्ते निभाने का तरीका है।
ये रिश्ते क्या होते हैं। क्या ऐसे कि किसी एक को अपना मन मार के दूसरे का कहा करना पड़े। या ऐसे कि किसी को बड़ा दिखाने के लिए खुद को न चाहते हुए भी नीचे गिराना पड़े। मानो अपना कोई स्वाभिमान और आत्म सम्मान ही नहीं है।
कई बार लड़कियों की सेल्फ रिस्पेक्ट लोग हज़म ही नहीं कर पाते। उन्हें इसमें उनका घमंड नज़र आने लगता है। सही को सही और गलत को गलत कहने की सीख मानो किताबों के पन्नों में ही कहीं दब जाती है। कोई आपको कितना भी अच्छा-बुरा बोल ले, आप उससे महज़ रिश्ते निभाने के लिए माफ कर दो। और वो भी तब जब वो इंसान आपसे माफी नहीं मांग रहा हो बल्कि और इगो दिखा रहा हो।
ज्यादातर औरतें समझौता कर लेती हैं
कई बार हम औरतें समाज के डर से मां-बाप की खुशियों के डर से कई समझौते कर लेती हैं। कई बार अपने प्यार को पाने के लिए किसी भी हद तक चली जाती हैं। लेकिन हमें ये सोचने की जरूरत है कि क्या सामने वाला भी आपके लिए ये हदें तोड़ने को तैयार है। क्या आपके स्वाभिमान में उसे अपना भी स्वाभिमान नज़र आता है। क्या जो आपको खुश रखने का वादा उसने किया है, वो सच में उसे निभा भी पाएगा। हम शायद ये सब सोचते ही नहीं क्योंकि हम लड़कियां किसी के भी इमोशन में बह जाती हैं और उसकी बातों पर विश्वास भी कर लेती हैं।
एक दिन दिल्ली मेट्रो की बात है। दो लड़कियां यूं ही आपस में बात कर रही थीं। दोनों में से एक की शादी हो चुकी थी और दूसरी का शायद अभी रिश्ता पक्का हुआ था। पहली जिसकी शादी हो रखी थी, वो बहुत परेशान सी लग रही थी। वो अपनी दोस्त जिसका रिश्ता पक्का हुआ था, उसे बार-बार अपनी बातें बता रही थी, या यूं कहे समझाने की कोशिश कर रही थी की अभी भी समय है संभल जा।
तो बातें कुछ ऐसी थी कि पहली लड़की अपने पति और उसके घरवालों की बातें आंखों में आंसू लिए अपनी दोस्त को बता रही थी। उसका कहना था, “यार बड़ी मुश्किल से घरवालों को इस रिश्ते के लिए राज़ी किया था। बहुत कुछ तोड़ के, पीछे छोड़ के ये शादी की थी, लेकिन ये ऐसा निकलेगा मुझे बिल्कुल आईडिया ही नहीं था।”
वादों और इरादों की सच्चाई
वो आगे कहती है, “ये वही लड़का है जिसने मेरी आंखों में कभी आंसू न आने देने का वादा किया था। जो मुझे हमेशा खुश रखने की बड़ी-बड़ी बातें करता था। लेकिन इसकी तरह इसके वादे भी खोखले निकले। आज मैं पूरी तरह बर्बाद हो गई हूं। मुझे कुत्ते वाली फिलिंग आती है, कि न मैं घर की रही हूं न घाट की।”
दूसरी लड़की जिसका अभी रिश्ता पक्का ही हुआ होता है वो कहती है, “ देख यार मैंने तो तुझे पहले ही कहा था कि तू बहुत इमोशनल है और ये लड़का तेरे इमोशन के साथ खेल रहा है। पहले इसने तेरी शादी तुड़वाई, फिर तुझसे झूठे वादे किए और अब तुझसे प्यार के नाम पर बस अपनी बातें थोपने की कोशिश कर रहा है।”
पहली लड़की फिर बोलती है, “यार तुझे तो पता ही है न, वो खुद भी पिस रहा है, इन सब में। मुझे लगता है शायद इसलिए वो ऐसा हो गया है।”
इतने में दूसरी इसे बीच में ही रोकते हुए कहती है, “पिस कहां रहा है, वो तुझे पिस रहा है, बस तुझे दिखाई नहीं दे रहा। वो अपने मज़े में है, अपने घरवालों के साथ अपने यारों के साथ और तू खुद को देख तेरी पूरी दुनिया उजड़ गई है। तू मेंटल डिप्रेशन में जी रही है और हालत ऐसी है कि की किसी को कुछ बता भी नहीं सकती।”
मुझसे इतनी ही कमियां थीं तो शादी क्यों की?
फिर पहली लड़की बोलती है, “हां यार बात तो तेरी सही है, इस शादी से दुख के सिवाय मुझे मिला ही क्या, बात-बात पर ताने, अच्छे-बुरे की डांट, तुम ऐसी हो, तुम वैसी हो और तुम्हें ऐसा होना चाहिए, तुम्हें वैसा होना चाहिए की सोच। हर बार यही लगता है कि वो तो मुझे पहले से जानता था, फिर उसने मुझसे शादी ही क्यों की।”
दूसरी लड़की बोलती है, “यार देख फिलहाल तू खुद पर ध्यान दें। जान है तो जहान है। अपने आप को मजबूत कर और उसके कहे नाकहे से दूर रह। जब वो तेरे लिए अपने को नहीं बदल सकता, तो तुझे भी उसके लिए खुद को बदलने की कोई जरूरत नहीं है। ये सब प्यार नहीं एक बंधन है, जिसमें वो तुझे बांधने की कोशिश कर रहा है।”
पहली लड़की अपने आंसू पोंछते हुए कहती है, “ हां मुझे स्ट्रांग रहना है, किसी और के लिए नहीं अपने और अपने मां-बाप के लिए क्योंकि अगर मैं हार गई तो वो भी हार जाएंगे। और मैं उन्हें हारता हुआ कभी नहीं देखना चाहती। यही उनकी शिक्षा रही है कि चाहे जो भी परिस्थिति हो खुद के उसूलों से समझौता मत करना। कभी अपनी नज़रों में गिरने वाला कोई काम मत करना। किसी चीज़ को सब से ऊपर रखना तो वो अपना आत्मसम्मान।”
प्यार हमें चाहिए, लेकिन अपनी आज़ादी के बदले नहीं
दूसरी लड़की इतने में बोल पड़ती है, “देख यार प्यार हमें चाहिए, लेकिन अपनी आज़ादी के बदले नहीं। हमें अगर अपने आत्म-सम्मान को गिराकर प्यार मिले, तो वैसे प्यार का कोई मतलब नहीं क्योंकि हम ऐसे भी कभी खुश नहीं रह पाएंगे। और वैसे भी मन के हारे हार है मन के जीते जीत।”
संवाद यहीं खत्म हो जाता है और लड़कियों का स्टेशन आ जाता है, वो उतर जाती हैं। इतने में उस कोच में बैठे सभी लोग बस उन्हीं को देख रहे होते हैं, क्योंकि वो अपनी भावनाओं में अपनी आवाज़ का दायरा भूल जाती हैं, उन्हें होश ही नहीं रहता कि उन्हें अनेकों लोग सुन रहे हैं। लेकिन ये अच्छा भी था क्योंकि इनकी बातों ने कई औरों को बहुत कुछ सिखा दिया था।