हमेशा बहुओं से ही उम्मीद क्यों की जाती है, कभी ससुराल वाले भी तो बदलें

हम अक्सर सुनते हैं कि बहुओं को ऐसे रहना चाहिए, ये पहनना चाहिए, ऐसा बर्ताव करना चाहिए। लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि किसी ससुराल वाले ने कहा हो कि अब बहु आ रही है, तो हमें थोड़ा उसके लिए बदलना चाहिए, उसके लिए चीज़े आसान करनी चाहिए। शायद नहीं, क्योंंकि ये सोच हमारे समाज में कहीं दूरदूर तक एक्जिस्ट ही नहीं करती। हमेशा बहुओं से ही उम्मीद की जाती है कि वो बदले, कभी ससुरालवाले बदले ये किसी का नज़रिया ही नहीं होता।

हमारे समाज में बहुओं को अक्सर एक विलेन की तरह पेश किया जाता है, जो घर आ गई तो मानों बेटा को गुलाम ही बना के रखेगी। शायद ये डायलॉग भी जोरू का गुलामइसी मानसिकता के चलते अस्तिव में आया। अरे, अगर बहु से इतनी दिक्कत और बेटे से जुदा होने का डर है, तो फिर शादी ही क्यों करनी होती है। क्यों किसी और की जिंदगी बर्बाद करनी होती है।

एक छोटा सा किस्सा इस नज़रिए का….

अनुष्का ब्याह कर पहली बार अपने ससुराल आई। उसकेे मन में बहुत उधेड़बुन चल रही थी। कई सपने थे, कुछ डर भी था। वो अपने कमरे में अपने विचारों से दोचार हो ही रही थी कि इतने में उसकी सास दरवाज़े पर बोली, “पूरा दिन कमरे में ही बैठी रहोगी या बाहर भी आयोगी।

अनुष्का बिना कुछ सोचे समझे कमरे से बाहर चली आई और सास के पास हॉल में सोफे बैठ गई। इतने में सास ने फिर टोका, “अरे तुम अब हमारी बहु बन गई हो, बिना सर पर पल्ले के बाहर कैसे आई। तुम्हारे मांबाप ने कुछ सिखाया नहीं क्या।अनुष्का कुछ समझ पाती इससे पहले सास फिर बोल पड़ी, “अब ऐसे ही बुत बन कर बैठी रहोगी या कुछ करोगी भी।

अनुष्का कमरे में गई और इस बार सर पर पल्ला लेकर बाहर आई। इतने में सास ने बोला, “सुनो आज रात का खाना तुम्हें बनाना है, तैयारी कर लो। और हां थोड़ा ज्यादा ही बना लेना। आसपास के रिश्तेदारों का भरोसा नहीं आज जाएंगे या यहीं रुकेंगे। अनुष्का के मन में अपनी पहली रसोई को लेकर कई सपने थे और इसलिए वो खुशीखुशी खाना बनाने के लिए किचन में चली गई।

घर का किचन उस समय बहुत गंदा था, सो अनुष्का ने सोचा पहले सफाई कर लूं, फिर खाना बना लूंगी। क्योंकि इतनी गंदगी में खाना बनाना उसके बस की बात नहीं थी। अनुष्का सफाई में लग गई और इस बीच समय कैसे फुर्र हो गया पता ही नहीं लगा। अनुष्का सफाई के बाद किचन में नहाधो के लौटी ही थी की उसकी सास ने वहां हंगामा मचा दिया।

सास ने अनुष्का से तमतमाते हुए पूछा, “खाना कहां है?” अनुष्का कुछ बोल पाती इससे पहले सास बोल पड़ी तुम क्या ज्यादा साफसफाई वाली बन रही हो, हमारे यहां ऐसे ही रहता है सब। अब सबको भूख लगी है, क्या खिलाएं, तुम्हारी ये सफाई।अनुष्का ने अपनी सास से रोते हुए थोड़े समय की मोहलत मांगी और कहा की वो सब तैयार कर लेगी।

अनुष्का जल्दीजल्दी सब बना ही रही होती है कि इतने में उसे उसके दफ्तर से फोन आ जाता है। अनुष्का फोन काट देती है। फिर मैसेज आता है कि अर्जेंट है, सो वो कॉल कर लेती है। कॉल में कुछ काम से जुड़ी खास बातें होती हैं और उसे समय लग जाता है। इतने में सास फिर एक बार उसके घरवालों को लेकर ताना दे जाती है।

अनुष्का जैसेतैसे खाना बनाकर सब मैनेज कर लेती है, लेकिन उसकी पहली रसोई के सारे सपने धरे के धरे ही रह जाते हैं। सब खाना खाकर उठ जाते हैं और उसे कोई पूछता भी नहीं है। वो इन सब में इतनी थक चुकी होती है कि बिना खाए ही सो जाती है। अनुष्का का पति सब देख रहा होता है, लेकिन कुछ करता नहीं है।

अगले दिन अनुष्का किसी जरूरी काम से ऑफिस जाने के लिए तैयार होती है, इतने में सास आकर कहती है, “अरे तुन ऐसे जाओगी ऑफिस। माना हमने तुम्हें जीन्स और सूट पहनने की परमिशन दी है, लेकिन बिना दुपट्टे के तुम…।” अनुष्का बिना कुछ बोले निकल जाती है और रात को जब घर आती है, तो देखती है कि सास सोफे पर बैठकर टीवी देख रही होती है। अनुष्का अपने कमरे की ओर बढ़ती है, इतने में सास बोल पड़ती है, खाना जल्दी बना लो, सब भूखे हैं।

अनुष्का बिना कुछ बोले जल्दी से चेंज कर किचन में जाती है और उसका माथा ठनक जाता है क्योंकि किचन फिर गंदी पड़ी होती है। आज उससे बर्दाश्त नहीं होता और वो बोल ही देती है, “ मम्मी जी ये रोज़ किचन इतनी गंदी क्यों पड़ी रहती है, मैं ऐसे में खाना नहीं बना सकती और मैं थक गई हूं, सो इसे साफ करने की हिम्मत भी नहीं है मुझमें।

सास अनुष्का को बहुत भलाबुरा सुनाने लगती है। इतने में अनुष्का पति आ जाता है और अपनी मां को चुप होने को कहता है, लेकिन सास को तो ये बात और बुरी लग जाती है और वो बेटे को भी सुनाने लगती है कि दो दिन की आई ये लड़की तेरे लिए भगवान हो गई है और हम सब तेरे कोई नहीं है अब। बेटा मां को शांत करने की कोशिश में फेल हो जाता है और बाहर चला जाता है।

अनुष्का अपने कमरे मेें चली जाती है, उस दिन कोई खाना नहीं होता। अगले दिन अनुष्का ऑफिस के लिए निकलती है, तो उसके हाथ में एक सूटकेस भी होता है। वो अपनी सास से कहती है, “ मम्मी आपने मुझे जितनी बददुआएं दी हैं, मुझे ताने दिए हैं, मैं इस घर में और नहीं रह सकती। मैं जा रही हूं।इतने में अनुष्का की दोस्त गाड़ी लेकर आ जाती है और अनुष्का निकल जाती है।

इस छोटे से किस्से में सास की दकियानूसी सोच और बहु के अति सहनशील न होने के कारण सब बिखर जाता है। ये सब सही हो सकता था अगर अनुष्का की सास उसे इतना भलाबुरा न कहती। उससे ऑफिस के साथ पारंपरिक काम और पहनावे, पल्ले की उम्मीद न करती। और हां अपने बेटे के सामने उसे जलील न करती। तो शायद हालात दूसरे होते।

कई लोग यहां अनुष्का को गलत कह सकते हैं। ये भी कह सकते हैं कि उसे इतना सहनशील तो होना ही चाहिए था कि वो कुछ बातें इग्नोर कर देती। तब भी ये रिश्ता बच जाता। लेकिन क्यों, आखिर अनुष्का खुद को मार कर ये रिश्ता बचाकर भी कैसे खुश रहती। कैसे रोज़ खुद को और टुटता हुआ देखती रहती और कब तक सब कुछ सहती रही। क्योंकि एक बात तो बड़ेबुजुर्ग खुद भी कहते हैं कि आदमी की आदत बदल सकती है, फितरत नहीं। 

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