क्या हमारे सपनों का मर जाना ही डिप्रेशन है?

सबसे ख़तरनाक होता है, मुर्दा शांति से भर जाना

न होना तड़प का सब सहन कर जाना,

घर से निकलना काम पर और काम से लौटकर घर जाना,

सबसे ख़तरनाक होता है, हमारे सपनों का मर जाना…

कवि पाश, जिनका असल नाम अवतार सिंह संधू था, ने अपनी कविता ‘सबसे खतरनाक’ में अलसाद यानी डिप्रेशन को बखूबी समझाया है. पाश की पंक्तियां आपको उस तनाव और दर्द का एहसास करवाती हैं, जो एक वक्ति अपने डिप्रशेन के दौरान महसूस करता है.

आज हमारे समाज में डिप्रेशन को लेकर बहुत असमंजस की स्थिति है. किसी के लिए ये बहुत गंभीर, तो किसी के लिए बहुत लाइट है. लेकिन इसकी जागरूकता आज भी सबकी पहुंच से बाहर है. ये एक ऐसी बीमारी है, जिसमें आपको व्यक्ति तो स्वस्थ नज़र आ सकता है, लेकिन उसकी असल मनोस्थिति का आपको अंदाज़ा भी नहीं लग सकता कि वो किस दौर से गुजर रहा है. शायद ऐसे दौर से जिसमें वो अपनी जान तक लेने पर उतारू हो सकता है.

ग्रामीण भारत में चिंता का स्तर बढ़ गया है

कई लोगों को डिप्रेशन एक शहरी कॉन्सेप्ट लगता है, लेकिन अगर आप इसके आंकड़ों को देखेंगे तो बड़ी आसानी से समझ जाएंगे कि ये ग्रामीण लोगों से भी दूर नहीं है. ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य सेवा की स्थिति पर रिपोर्ट विश्लेषण 2024 के अनुसार, ग्रामीण भारत में चिंता का स्तर बढ़ गया है. रिपोर्ट में लगभग 45 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि उन्हें चिंता का सामना करना पड़ा है. भारत के ग्रामीण इलाकों में 45 फीसदी लोग मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं से जूझ रहे हैं.

मेडिकल एक्सपर्ट्स की मानें, तो अगर तनाव लंबे समय तक बना रहता है, तो यह आपके शरीर को नुकसान पहुंचा सकता है. बहुत ज़्यादा तनाव मानसिक और शारीरिक दोनों तरह की स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है. साथ ही आपकी ज़िंदगी को मश्किल भी बना सकता है.

साइंस के मुताबिक, जब आप तनाव महसूस करते हैं, तो आपका शरीर ऐसे हार्मोन रिलीज़ करता है, जो आपको आने वाले कठिन हालात का सामना करने के लिए तैयार करता है. लेकिन लंबे समय तक तनाव रहने से आपके शरीर में कई गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा होती हैं, जैसे चिंता, हृदय रोग और इम्यूनिटी का कमज़ोर होना आदि. यानी आप बीमारियों का घर बन सकते हैं.

कई बार आपको लग सकता है कि आपको शायद अब कोई नहीं समझता, या आपका इस दुनिया में कोई है नहीं. ‘पाश’ ने जैसे कहा कि आपके सपने मर जाते हैं, तो आपके जीवन की इच्छाएं भी मरने लगती है. हालांकि, ये भी एक सच्चाई है कि अलग-अलग लोगों में डिप्रेशन का लेवल भी अलग होता है और इसे केवल वही समझ सकता है, जो इससे गुजर रहा हो.

लोगों की सलाह, डॉक्टरों का ज्ञान और शायद दोस्तों का साथ भी आपको तनाव में गुस्सा दिला सकता है, क्योंकि इस समय आप सिवाय अपने किसी और से कुछ नहीं सुनना चाहते. आपको कोई सुने ये जरूर आपके मन में बात होती है, लेकिन ये भी तब तक जब तक सामने वाला आपको समझ रहा हो. ये तनाव शायद किसी के जीवन का सबसे बुरा दौर हो सकता है, जिसकी किसी को एहसास भी न हो.

बर्ताव में बदलाव को बिल्कुल भी नज़रअंदाज़ न करें

आप इस समय अधिक चिड़चिड़े हो सकते हैं, आपको किसी बात पर गुस्सा बहुत जल्दी आ सकता है या आप बिल्कुल शांत, बातेंं छिपाने वाले बन सकते हैं. ऐसे बर्ताव में बदलाव को बिल्कुल भी नज़रअंदाज़ न करें. अपने लिए एक बार फिर कोशिश करें. जरूरी लगे तो डॉक्टर की मदद जल्द लें और अपने आस-पास वालों को बताएं कि आप क्या महसूस कर रहे हैं.

फिज़िकल एक्सरसाइज़ से भी स्ट्रेस हार्मोन कम होते हैं और मूड बेहतर होता है. मेडिटेशन भी दिमाग को शांत करने में मददगार हो सकती है. ऐसे में आप उनकी भी मदद ले सकते हैं.

अगर आप हिंसक हो रहे हैं और अपना कंट्रोल खोते जा रहे हैं, तो ये एक तरह का मानसिक विकार हो सकता है, जिसे साइंस की भाषा में बाइपोलर डिसऑर्डर कहते हैं. अगर कोई व्यक्ति बाइपोलर डिसऑर्डर से पीड़ित होता है तो उसे मेनिया या डिप्रेशन के दौरे पड़ते हैं यानी उसका मूड या तो बहुत हाई या लो रहता है.

एक्सपर्ट्स की मानें, तो इस डिसऑर्डर में व्यक्ति बड़ी-बड़ी बातें करता है, लगातार काम करता है, उसे नींद की न के बराबर ज़रूरत महसूस होती और उसके बावजूद वो चुस्त-दुरुस्त रहता है. इसमें पीड़ित व्यक्ति ज़रूरत से ज्यादा ख़र्च करता है और कोई भी फै़सला बिना सोचे समझे ले लेता है. उसका मन एक ज़गह पर स्थिर नहीं रहता है.

अगर कोई व्यक्ति टाइप टू बाइपोलर, जिसे हाइपोमेनिया भी कहते हैं, इसका शिकार है, तो इसमें उदासी के दौरे आते है. इस डिसऑर्डर में मन उदास रहता है और बिना किसी कारण के रोते रहने का मन करने, किसी काम में बिल्कुल मन नहीं लगने, नींद न आने के बावजूद बिस्तर पर पड़े रहने का मन करने, नींद बहुत कम या ज़्यादा आना जैसे लक्षण होते हैं. इससे पीड़ित मरीज़ ऊर्जा में कमी महसूस करता है. इस डिसऑर्डर से प्रभावित लोग मिलना-जुलना बंद कर देते हैं.

बाइपोलर डिसऑर्डर के गंभीर परिणाम

बॉलीवुड के अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की ख़ुदकुशी के समय बाइपोलर डिसऑर्डर का कॉन्सेप्ट मीडिया में खूब आया, लेकिन इसके बाद ये फिर कहीं गायब हो गया. आपको बता दें कि बाइपोलर डिप्रेशन में आत्महत्या की आशंका सबसे ज्यादा होती है. और अगर ऐसा व्यक्ति कभी आत्महत्या या नाउम्मीदी की बात करता है तो ये एक ‘रेड सिग्नल’ हो सकता है और उसका तुरंत इलाज कराया जाना चाहिए.

बाइपोलर डिसऑर्डर के मरीज़ों को ज़्यादा देखभाल और प्यार की ज़रूरत होती है. मेनिया में कई बार लोग बहुत ग़लत फ़ैसले ले लेते हैं लेकिन जब वो सामान्य होने लगते हैं तो उन्हें अपनी ग़लती का एहसास और पछतावा होता है.

ऐसे में उन्हें शांति और प्यार से समझाने की ज़रूरत होती है. वहीं इस बात का भी ध्यान देना होता है कि वे दिमाग को शांत रखें और उसे थकाएँ नहीं. ऐसे मरीज़ों को लोगों से मिलने-जुलने के लिए भी प्रेरित करना चाहिए.

नोट: दवा और थेरेपी के ज़रिए मानसिक बीमारियों का इलाज संभव है. इसके लिए आपको किसी मनोचिकित्सक से मदद लेनी चाहिए. अगर आपमें या आपके किसी करीबी में किसी तरह की मानसिक तकलीफ़ के लक्षण हैं तो इन हेल्पलाइन नंबरों पर फ़ोन करके मदद ली जा सकती है:

  • सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण मंत्रालय-1800-599-0019
  • इंस्टिट्यूट ऑफ़ ह्यूमन बिहेवियर ऐंड एलाइड साइंसेज़- 9868396824, 9868396841, 011-22574820
  • नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेंटल हेल्थ ऐंड न्यूरोसाइंसेज़- 080 – 26995000
  • विद्यासागर इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेंटल हेल्थ ऐंड एलाइड साइंसेज़, 24X7 हेल्पलाइन-011 2980 2980

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