International Women’s Day 2024: आख़िर अस्तित्व में कैसे आया महिलाओं का ये दिन?

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस हर साल 8 मार्च को देशविदेश में ज़ोरशोर से मनाया जाता है। इस दिन महिलाओं के संघर्ष को याद करने के साथ ही उनके बेहतर कल के लिए कई कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। महिलाओं का ये दिन पहली बार साल साल 1911 में मनाया गया। हालांकि इसके पीछे की पूरी कहानी भी काफी संघर्षपूर्ण है।

आपको बता दें कि महिला दिवस की असल नींव करीब एक सदी से भी पहले तब पड़ी, जब क़रीब पंद्रह हज़ार महिलाओं ने न्यूयॉर्क शहर में एक परेड निकाली। इन महिलाओं की मांग थी कि औरतों के काम के घंटे कम हों। उन्हें तनख़्वाह अच्छी मिले और महिलाओं को वोट डालने का हक़ भी मिले। इस प्रदर्शन के लगभग एक साल बाद ही अमरीका की सोशलिस्ट पार्टी ने पहला राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का एलान किया। इसे अंतरराष्ट्रीय बनाने का ख़याल सबसे पहले क्लारा ज़ेटकिन नाम की एक महिला के ज़हन में आया था।

क्लारा ज़ेटकिन और अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की समाजवादी उत्पत्ति |  प्रत्यग्नि

क्लारा ज़ेटकिन कौन थीं?

क्लारा ज़ेटकिन एक लेफ्ट लिबरल विचारों वाली महिला थीं। उन्हें महिलाओं के हक़ के लिए आवाज़ उठाने के लिए खास तौर पर याद किया जाता है। उन्होंने ही अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का सुझाव, 1910 में डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगेन में कामकाजी महिलाओं के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में दिया था। उस सम्मेलन में 17 देशों से आई 100 महिलाएं शामिल थीं और वो एकमत से क्लारा के इस सुझाव पर सहमति जताई।

आपको बता दें कि पहला अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 1911 में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विटज़रलैंड में मनाया गया। इसका शताब्दी समारोह 2011 में मनाया गया। तो, तकनीकी रूप से इस साल हम 113वां अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने जा रहे हैं। इस दिन की खास बात ये भी है कि पहले कुछ देशों से शुरू हुआ ये दिन अब पूरी दुनिया में मनाया जाता है।

1975 में पहली बार संयुक्त राष्ट्र ने भी ये जश्न मनाया

हालांकि इस दिन को औपचारिक मान्यता तब मिलने में बहुत समय लग गया। साल 1975 में पहली बार संयुक्त राष्ट्र ने भी ये जश्न मनाना शुरू किया और इसके लिए पहली थीम 1996 में चुनी थी, जिसका नाम गुज़रे हुए वक़्त का जश्न और भविष्य की योजना बनानाथा।

वैसे क्लार ज़ेटकिन ने जब अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का सुझाव दिया था, तो उनके ज़हन में कोई ख़ास तारीख़ नहीं थी। इस दिन के पीछे असल कहानी तो रूसी महिलाओं के आंदोलन की है। जिसने 1917 में ज़ार की हुक़ूमत हिला दी और निकोलस द्वितीय को अपना तख़्त छोड़ना पड़ा था। ये रूसी महिलाएं रोटी और अमनकी मांग के साथ ही महिलाओं के वोट डालने के अधिकार को भी सुनिश्चित करना चाहती थीं।

Women workers opened first Russian revolution of 1917 – Workers World

रूसी महिलाओं का विरोध प्रदर्शन

जानकारी के अनुसार, जिस दिन रूसी महिलाओं ने विरोध प्रदर्शन शुरू किया था, वह रूस में इस्तेमाल होने वाले जूलियन कैलेंडर के मुताबिक़, 23 फ़रवरी और रविवार का दिन था। यही दिन ग्रेगॉरियन कैलेंडर के मुताबिक़, आठ मार्च था और तब से इसी दिन अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाने लगा।

इस दिन को खास बनाने के लिए बैंगनी, हरा और सफेद रंगों को भी चुना गया है। बैंगनी रंग न्याय और गरिमा का सूचक है। हरा रंग उम्मीद का रंग है और सफ़ेद रंग को शुद्धता का सूचक माना गया है। ये तीनों रंग 1908 में ब्रिटेन की वीमेंस सोशल एंड पॉलिटिकल यूनियन (डब्ल्यूएसपीयू) ने तय किए थे। इसके तहत हर साल इस आयोजन का थीम भी सेट किया जाता है।

आज भले ही आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस एक प्रतीकात्मक जश्न भर बन कर रह गया हो। और केवल उन महिलाओं की उपलब्धियों तक सीमित हो गया हो, जो समाज में, सियासत में, और आर्थिक क्षेत्र में महिलाओं की तरक़्क़ी का दर्पण नज़र आती हों। लेकिन इस दिन के पीछे असल मतलब बराबरी के लिए संघर्ष और आंदोलन ही हैं। यही इसकी जड़े हैं और ज्यादातर देशों में इस दिन प्रदर्शन तक आयोजित किए जाते हैं।

इसे भी पढ़ें: Laapataa Ladies Review: किरण राव की फिल्म पितृसत्ता को चुनौती देते हुए कई जरूरी संदेश देती है!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *