गुलज़ार साहब ने क्या खूब कहा है, “आदतन तुम ने कर दिए वादे, आदतन हम ने ए‘तिबार किया।” ये जीवन भर साथ निभाने का वादा और कभी न टूटने का ऐतबार ही को इश्क़ को और हसीन बनाता है। वेलेंटाइन वीक के इस दिन को मॉर्डन लोग भले ही इसे प्रॉमिस डे का नाम दे दें। लेकिन इश्क़ की ये दास्तान और इसे निभाने का ये हुनर तो हमारे यहां सदियों पुराना है। यूंही नहीं हीर–रांझे, सोनी–महिवाल की कहानियां हमारे यहां फेमस हैं।
खैर, वादे, एतबार और इंतज़ार को लेकर एक प्रेम कहानी आपके लिए प्रस्तुत है। इस कहानी में पात्र जरूर काल्पनिक हैं लेकिन ये हमारी आपकी रोज़–मर्रा की जिंदगी से जुड़े हुए भी हैं। कहानी की शुरुआत एक कॉलेज कैंपस से होती है। जहां अक्सर प्यार पनपता और परवान चढ़ता है। कहानी के नायक अभिलाष दिल्ली में बचपन से पले बढ़े होते हैं। वहीं नायिका अमृता पंजाब से दिल्ली अपनी आगे की पढ़ाई के लिए आई होती है।
अमृता और अभिलाष की मुलाकात
अमृता और अभिलाष की मुलाकात कॉलेज के पहले दिन सेमिनार में होती है। दोनों किसी अनजान की तरह ही पहली बार मिलते हैं। फिर हर रोज क्लास में मिलने लगते हैं। दोनों के बीच एक अच्छी दोस्ती भी होती है। जो कहीं न कहीं उन्हें और करीब ले आती है और कॉलेज खत्म होने के बाद भी उनका एक–दूसरे से मिलना बदस्तूर जारी रहता है।
अभी तक दोनों के बीच सिर्फ दोस्ती ही थी। लेकिन एक दूसरे की ऑफिस की बातें और दिनभर का हाल दोनों को सुनने–सुनाने की ऐसी लत लगी मानों अब इसके बगैर उनका काम ही नहीं चलना था। धीरे–धीरे अभिलाष के मन में अमृता के लिए कुछ फीलिंग्स जागी। लेकिन वो डरता था कि कहीं इसके इज़हार से अमृता की दोस्ती न खो दे।
उधर, इन सबसे अंंजान अमृता एक बोल्ड लड़की थी, जो अपने विचारों में बेहद स्पष्ट और दिल की साफ थी। उसे बेवजह घटिया मज़ाक पसंद नहीं थे, उसे महिलाओं के लिए बने जोक्स पर हंसी नहीं दुख होता था। दिल से सोचती थी, और जो बोलना होता था, मुंह पर बोल देती थी। कुछ साल ऐसे ही समय बीता। दोनों के बीच व्यस्त समय में से भी एक दूसरे के लिए जरूर समय होता था।
मन अभी भी ना स्वीकार नहीं कर पा रहा था
कुछ समय बीतने के बाद, एक दिन कुछ ऐसा घटा, जिसने उनकी जिंदगी को एक अलग दिशा दे दी। दिल का प्यार जुबां पर आ गया और फिर दोनों ने अलग होने का फैसला कर लिया। अमृता बहुत साफ थी कि उसे इस रिश्ते को आगे नहीं बढ़ाना और इसलिए उसने अभिलाष को भी साफ मना कर दिया। लेकिन अभिलाष का मन अभी भी ना स्वीकार नहीं कर पा रहा था।
दोनों के बीच कई बार इस मुद्दे को लेकर बातें हुईं। अभिलाष ने कई बड़े–बड़े वादे किए। जीवनभर साथ देने, खुश रखने और अमृता की हर ईच्छा पूरी करने से लेकर और भी बहुत कुछ। अमृता फिर भी नहीं मानी। और सबकुछ छोड़कर घर निकल गई।
एक दिन अमृता की शादी की खबर अभिलाष को मिली अभिलाष टूट गया और उसने अमृता को फिर से मनाने की ढ़ेरों कोशिशें कीँ। अमृता के दोस्तों को भी अभिलाष ने सब कुछ बता दिया। उसे उम्मीद थी कि शायद कुछ अच्छा हो जाए। फिर एक दिन अमृता को अभिलाष के एक्सीडेंट की खबर मिली। अमृता डर गई और कहीं न कहीं उसकी भावनाएं बाहर आ गईं।
अभिलाष अमृता को छोड़ गया
अमृता ने अभिलाष ने शादी के लिए अपना रिश्ता तोड़ दिया। अभिलाष ने एक बार फिर कई वादे किए, अपने बां–बाप तक को छोड़ दिया और फिर दोनों की शादी हो गई। अमृता एक नए घर पहुंच गई। लेकिन एक–दो दिन में ही उसे एक–एक कर सारे वादे टूटते नज़र आने लगे। अभिलाष अपने मां–बाप और अमृता के बीच तालमेल नहीं बना पा रहा था।
फिर एक दिन ऐसा आया जब अभिलाष अमृता को छोड़कर अपने मां–बाप के पास चला गया। इधर, अमृता एकदम टूट चुकी थीं। क्योंकि उसने अभिलाष के वादों पर एतबार करके अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा फैसला खुद लिया था। अब उसके पास सिर्फ इंतजार के कुछ नहीं बचा था। अभिलाष के लिए ये सब कितना मुश्किल था, इसका तो पता नहीं लेकिन अमृता के लिए अभिलाष को छोड़ने का ख्याल भी नामुमकिन की तरह था।
ये शायद प्यार ही था, जो अमृता एकदम आज अकेली होने के बावजूद अभिलाष का इंतजार कर रही थी। उसे अभी भी उसके वादे पर एतबार था और उसके लौट के आने का इंतजार भी। यहां नासिर काज़मी साहब की ये लाइनें याद आती हैं, “तेरी मजबूरियाँ दुरुस्त मगर, तू ने वादा किया था याद तो कर।“
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