कहते हैं लाल इश्क़ का रंग भी है और क्रांति का भी। क्योंकि इश्क और क्रांति दोनों एक–दूजे से कुछ यूं जुड़ी है मानो एक के बिना दूजा अधूरा। तभी तो देखिए न हमारे समाज में आज भी इश्क आसान नहीं है। सदियों पहले इस इश्क ने कई कुर्बानियां लीं। हीर–रांझा, लैला–मजनू, शिरीन–फरहाद, सोनी–माहीवाल ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जिन्होंने अपने इश्क के जरिए एक नई क्रांति लिखा दी।
साहिर लुधियानवी साहब ने भी क्या खूब कहा है, “जब तुम्हें मुझ से ज़ियादा है ज़माने का ख़याल, फिर मिरी याद में यूँ अश्क बहाती क्यूँ हो। तुम में हिम्मत है तो दुनिया से बग़ावत कर दो, वर्ना माँ बाप जहाँ कहते हैं शादी कर लो।“
किसी भाषण में पढ़ी गईं ये सब लाइनें सोहिनी चुप–चाप सुन रही थी। उसे यहां अपने प्यार रोहित की याद भी आ रही थी। वो जैसे–तैसे अपने आंसुओं को छुपाकर उस परिसर से बाहर किसी एकांत में पहुंची। वहां ज़ोर–ज़ोर से रोने के कुछ देर बाद जब उसका मन हल्का हुआ, तो उसने अपने बैग से एक डायरी निकाली। डायरी में रखा लाल गुलाब मानो सोहिनी को आज भी रोहित की याद दिला रहा था।
“तुम्हारा और सिर्फ तुम्हारा रोहित“
सोहिनी उस गुलाब को निहार ही रही होती है कि इतने में उसकी सहेली स्वाति उसके पास आकर उससे सवाल करने लगती है। वो कहती है, “अरे यार इतना अच्छा तो बोल रहे थे अभिरंजन जी। तुम वहां से ऐसे क्यों भाग कर चली आई।” सोहिनी चुप थी। इतने में उस गुलाब के साथ रखी रोहित की चिट्ठी नीचे गिर जाती है। चिट्ठी एक लिफाफे में बंद होती है, जिसके ऊपर लिखा होता है, “तुम्हारा और सिर्फ तुम्हारा रोहित।”
स्वाति सवाल करती है, “सोहिनी ये रोहित कौन है, आज तक तुमने इसके बारे में कुछ बताया नहीं। कहां है और तुम आज भी इसकी चिट्ठी क्यों संभाल कर रखे हुए हो?” सोहिनी थोड़ी सहमी आवाज़ में कहती है, “छोड़ों न स्वाति, चलते हैं यहां से।” स्वाति भी आज अड़ जाती है कि वो रोहित के बारे में जानकर ही रहेगी। इसलिए वो जिद्द करने लगती है। स्वाति सोहिनी की सबसे अच्छी दोस्त होती है, इसलिए वो उसे ज्यादा मना नहीं कर पाती और एक बार फिर रो पड़ती है।
स्वाति कहती है, “सोहिनी तुम मुझे सब कुछ बता दो, शायद इससे तुम्हारा मन थोड़ा हल्का हो जाए।” सोहिनी हिम्मत करती है और रुहासे गले के साथ कहती है। स्वाति रोहित मेरा पास्ट है, करीब पांच साल पहले हम स्कूल में मिले थे। फिर वहीं प्यार हुआ और हमने साथ में कई सपने देखे। आगे ग्रेजुएशन के लिए भी हमने एक ही कॉलेज में एडमिशन लिया। लेकिन कॉलेज खत्म होते ही उसकी नौकरी लग गई और उसके घरवालों ने उसका रिश्ता तय कर दिया।
घरवालों के आगे झुक गया
स्वाति बड़ी आश्चर्य के साथ पूछती है, “तो रोहित मान गया?” सोहिनी कहती है इसी बात का तो दुख है कि जिस लड़के ने बड़े–बड़े सपने दिखाए, साथ जीने–मरने के वादे किए। वो अपने घरवालों के आगे झुक गया। स्वाति से सोहिनी कहती है कि ये सब इतनी आसानी से कैसे हो गया। तो सोहिनी बताती है, “कुछ भी आसान नहीं था स्वाति उसके पापा ने उसे डराया, धमकाया। जब इससे भी बात नहीं बनी तो मरने का नाटक तक कर दिया। क्या करता वो भी आखिर मान ही गया।”
स्वाति कहती है, इसके बाद क्या हुआ? सोहिनी बताती है कि होना क्या था, आज उसके घरवालों के जिद् के आगे तीन जिंदगियां बर्बाद हैं। मेरी और रोहित के साथ ही श्वेता की भी। जो अब उसकी पत्नी तो है, लेकिन वो उसे अपना नहीं पाया। और यही कारण था कि मैं दिल्ली छोड़कर यहां देहरादून आई। स्वाति पूछती है, “क्या अभी भी तुम्हारी रोहित से बात होती है?” सोहिनी ना में जवाब देती है, लेकिन कहती है कि आस–पास वाले पुराने दोस्त उसकी खबर जैसे–तैसे पहुंचा ही देते हैं।
अब मैं उसके लिए दुनिया को छोड़ सकता हूं
स्वाति सोहिनी को बिना बताए रोहित का नंबर उसके फोन से लेकर रोहित से बात करती है। वो रोहित को सुनना चाहती थी कि आखिर अब चल क्या रहा है, उसके मन में। वो अगर तब शादी कर सकता था, तो अब पत्नी को अपना क्यों नहीं रहा। ये सब सवाल स्वाति रोहित से करती, इससे पहले ही रोहित बोल पड़ा, “तुम स्वाति हो न, सोहिनी की दोस्त। प्लीज़ मुझे बताओ, वो कैसी है, क्या मुझे याद करती है। वो मेरे लिए रोती तो नहीं है न?” एक के बाद एक कई सवाल सुनकर स्वाति चुप हो जाती है।
रोहित फिर हैलो बोलता है और कहता है कि मैंने तुम्हारा नाम कॉलिंग ऐप पर देख लिया था। मैं सोहिनी की हर खबर रखता हूं और इसलिए जानता हूं कि तुम उसकी सबसे अच्छी सहेली हो। प्लीज़ बताओ न मुझे सोहिनी के बारे में। स्वाति चुप थी। रोहित फिर कहता है, “सोहिनी क्या आज भी मेरा लाल गुलाब देखकर रो रही थी। अगर हां, तो उसे कहना तब मेरी हिम्मत नहीं थी, लेकिन अब मैं उसके लिए दुनिया को छोड़ सकता हूं।
स्वाति को कुछ समझ नहीं आ रहा था। लेकिन आज उसे इस लाल गुलाब की अहमियत अच्छे से समझ आ गई थी। यही शायद इश्क भी है और क्रांति भी। जो सब कुछ समर्पण भी कर सकता है और जिसमें सब कुछ पा लेने की जिद भी शामिल होती है। कहा भी तो जाता है, “ये इश्क नहीं आसां , बस इतना तो समझ लीजे,एक आग का दरिया है, और डूब के जाना है।”
नोट: ये कहानी काल्पनिक है।