बीते कुछ दिनों से सुप्रीम कोर्ट में चल रहा 26सप्ताह की गर्भवती महिला का मामला पूरे देश के लिए सुर्खियां बन गया था। सर्वोच्च अदालत ने इस मामले में खुद अपने ही फैसले पर पुनर्विचार किया और अब डॉक्टर्स की सलाह के बाद बच्चे को इस दुनिया में आने की अनुमति दे दी।
बता दें कि इससे पहले अदालत ने नौ अक्टूबर के अपने एक फैसले में महिला को गर्भपात की ये कहते हुए अनुमति दे दी थी कि महिला ने गर्भनिरोधक के उपाय किए थे और ये एक अनचाहा गर्भ है। इसलिए अदालत महिला की मानसिक और आर्थिक स्थिति को देखते हुए उसे गर्भपात की इजाजत देती है।
महिला ने खुद को मानसिक और आर्थिक तौर पर अक्षम बताया था
यहां महिला ने अदालत में ये दावा किया था कि उसके पहले ही दो बच्चे हैं। और अब वो तीसरे के पालन पोषण के लिए मानसिक और आर्थिक तौर पर सक्षम नहीं है। महिला ने ये भी कहा था कि अभी वो पिछले साल ही मां बनी है और गर्भनिरोधक के तौर पर स्तनपान का उपयोग कर रही थी। यहां महिला ने स्तनपान को गर्भावस्था से 95% से अधिक सुरक्षा प्रदान करने वाले उपाय के तौर पर बताया था।
हालांकि गर्भपात की अनुमति के एक दिन बाद ही मेडिकल बोर्ड के एक डॉक्टर ने सरकारी वकील के माध्यम से कोर्ट से गर्भावस्था को समाप्त करने से पहले भ्रूण के दिल को बंद करने के संबंधित दिशा–निर्देश मांगे। इसमें भ्रूण के जिंदा और स्वस्थ रहने के बहुत सही आधार बताए गए। डॉक्टर का कहना था कि चूंकि अगर भ्रूण का दिल नहीं बंद किया गया तो यह गर्भपात नहीं बल्कि समय से पहले प्रसव होगा, जहां पैदा होने में और दिक्कतें हो सकती हैं।
गर्भ में पल रहा बच्चा सामान्य है
इसके बाद मामला एक बार फिर अदालत पहुंचा और इस बार चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने तीन जजों की एक बेंच का गठन किया, जिसने आज, सोमवार 16 अक्टूबर को एम्स दिल्ली की जांच रिपोर्ट के आधार पर अपना फैसला सुनाया है। एम्स ने अपनी रिपोर्ट में इस बात की स्पष्ट जानकारी सामने रखी है कि महिला के गर्भ में पल रहा बच्चा सामान्य है। अदालत ने इस रिपोर्ट में ये भी पाया कि डिप्रेशन की मरीज महिला जिन दवाओं का सेवन कर रही है, उससे बच्चे को कोई नुकसान नहीं हुआ है।
अपने फैसले में मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि गर्भावस्था की अवधि 24 सप्ताह से अधिक हो गई है, जो मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (एमटीपी) की अनुमति से बाहर निकल गई है। इसके अलावा मां को इससे तत्काल कोई खतरा नहीं है। फिलहाल भ्रूण 26 सप्ताह और 5 दिन का है और उसमें कोई विसंगति भी नहीं है। ऐसे में अदालत इसे समाप्त करने की अनुमति नहीं दे सकती है।
पहले दो जजों की पीठ का खंडित फैसला आया था
ध्यान रहे कि पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने महिला के स्वास्थ्य जांच का आदेश दिया था। और उससे पहले दो जजों की पीठ ने इस मामले में एक खंडित फैसला सुनाया था। 11 अक्टूबर को हुई सुनवाई में जस्टिस हिमा कोहली ने हैरानी जताते हुए कहा कि कौन सी अदालत कहेगी कि ‘एक भ्रूण की दिल की धड़कनों को रोका जाए।‘ उन्होंने कहा कि वो महिला को गर्भपात की इजाजत नहीं दे सकती हैं।
वहीं इस मामले में दूसरी जज जस्टिस बी वी नागरत्ना ने कहा कि अदालत को महिला के फैसले का सम्मान करना चाहिए, जो गर्भपात कराने पर कायम रही है। इसके बाद चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने इस मामले को आगे तीन जजों की पीठ को भेज दिया। अब ये फैसला उन्हीं की अध्यक्षता में सामने आया है।
गौरतलब है कि हमारे देश का कानून 20 सप्ताह से कम में महिला को आसानी से गर्भपात कराने की अनुमति दे देता है। लेकिन 20-24 सप्ताह के बीच, इसमें गर्भपात की अनुमति लेनी जरूरी होती है। इसके अलावा अगर सरकारी मेडिकल बोर्ड को भ्रूण में पर्याप्त असामान्यताएं मिलती है, तो 24 सप्ताह के बाद भी गर्भपात कराया जा सकता है। इसमें बलात्कार पीड़िता, नाबालिग, मानसिक या शारीरिक रूप से बीमार महिलाएं शामिल हैं।