मिर्ज़ा ग़ालिब साहब ने क्या खूब कहा है, “मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का, उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले।” वाकई ये प्यार ही तो था जो, शालिनी बीते आठ सालों से अमेरिका गए अनुराग का टक–टकी लगाए इंतज़ार कर रही थी। फिर एक दिन अनुराग विदेश से तो लौटा, लेकिन कुछ ऐसा हुआ कि शालिनी को उसका प्यार मिलकर भी नहीं मिला।
इस प्यार वाली कहानी के दो मुख्य किरदार हैं। शालिनी और अनुराग, दोनों बचपन के साथी, पड़ोसी और एक ही स्कूल में पढ़े थे। बचपन में अनुराग शालिनी को लेकर बहुत सीरियस था। उस पर एक प्रेमी की तरह ह़क़ भी जमाया करता था। तब शालिनी अनुराग को सिर्फ अपना सबसे अच्छा दोस्त मानती थी। लेकिन उनका झगड़ा– प्यार कुछ ऐसा था मानों दोनों एक–दूजे के लिए ही बने हों।
शालिनी और अनुराग के परिवारों में भी अच्छी दोस्ती थी। और यही कारण था कि दोनों एक–दूसरे के सबसे करीब थे। स्कूल की पढ़ाई पूरी होने तक सब कुछ अच्छा रहा। आगे की पढ़ाई के लिए अनुराग को अमेरिका से एक अच्छी यूनिवर्सिटी की स्कॉलरशिप भी मिल गई। अब तक शालिनी भी अनुराग के लिए फील करने लगी थी। इसलिए जैसे उसे अनुराग के अमेरिका जाने की खबर मिली वो खुश तो हुई लेकिन उसके मन में एक उदासी भी थी।
जल्द वापसी का वादा
परिवार वाले भी दोनों बच्चों को अलग नहीं देखना चाहते थे और इसलिए शालिनी को भी अमेरिका भेजने की तैयारी शुरू हो गई। इधर, एक दिन अचानक शालिनी के पिता को दिल का दौरा पड़ा और फिर शालिनी ने अपने बाबा के साथ यहीं दिल्ली में ही रुकने का फैसला किया। उसे भरोसा था कि अनुराग जल्द ही दिल्ली फिर से लौट आएगा। अनुराग भी शालिनी से जल्द वापसी का वादा करके चला जाता है।
अनुराग अमेरिका पहुंचते ही शालिनी को फोन करता है और फिर कुछ दिनों उन दोनों की लगभग रोज बातें भी होती हैं। फिर ये बातें धीरे–धीरे कम होने लगती हैं और समय के साथ लगभग खत्म सी हो जाती हैं। अनुराग अपनी अमेरिका की लाइफ में मस्त हो जाता है। वहीं शालिनी अनुराग को हम पल याद तो करती है, लेकिन उसे कहीं डिस्टर्ब ना कर दे, ये सोच कर फोन नहीं करती।
देखते ही देखते अनुराग की पढ़ाई पूरी हो जाती है। फिर वो इंटर्नशिप और फिर नौकरी के फेर में फंसकर वहीं अमेरिका में ही बस जाता है। इस बीच उसकी जिंदगी में शालिनी की जगह नुपूर ले चुकी होती है। अनुराग लगभग पांच सालों से अपने घर भी नहीं आया होता है।
अधूरा प्यार और इंतज़ार
शालिनी के बाबा की दोबारा दिल का दौरा पड़ने से मौत हो जाती है। वो अपनी मां के साथ अपने बाबा के कारोबार को संभालना ही शुरू करती है कि अचानक से कुछ करीबी लोगों के विश्वासघात के चलते उनका व्यापार बंद हो जाता है। अनुराग का परिवार शालिनी और उसकी मां की मदद तो करता है, लेकिन जैसे ही अनुराग अपनी मां को नुपूर के बारे में बताता है, उसकी मां शालिनी के परिवार से रिश्ता खत्म कर देती है।
अनुराग के बाबा अभी भी शालिनी का साथ दे रहे होते हैं, लेकिन अपनी पत्नी के चलते बहुत कुछ करने में समर्थ नहीं होते। शालिनी नौकरी ढूंढ़ने लगती है, उसे जैसे–तैसे एक नौकरी मिल जाती है। अब वो अपने परिवार को अकेले संभालते हुए सब कुछ समेटने की कोशिश में लग जाती है। इस बीच हालात और खराब होते हैं, लेकिन अभी भी शालिनी को अनुराग का इंतजार होता है। उसे लगता है कि उसका अनुराग सब कुछ ठीक कर देगा।
करीब आठ साल बाद अनुराग वापस दिल्ली लौटता है, लेकिन उसके साथ नुपूर भी होती है। जिसकी खबर सुनकर शालिनी टूट जाती है। वो फैसला करती है कि अब वो अनुराग से कभी नहीं मिलेगी। लेकिन अनुराग आता है शालिनी से मिलने, उससे माफी मांगने और नुपूर से मिलवाने। शालिनी अनुराग से कुछ नहीं कहती, बस आंसुओं वाली मुस्कुराहट से अलविदा लेती है और वहां से चली जाती है। शालिनी का प्यार और इंतज़ार अधूरा रह जाता है। उसकी सबसे बड़ी उम्मीद टूट जाती है। वो एकांत में खूब रोती है और फिर अनुराग की यादों में खो जाती है।
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