स्वाति और अंकित आज सालों बाद एक मॉल में मिले। उन्हें एक–दूसरे को देखते ही 5 साल पुराना सारा वक्त याद आ गया। क्योंकि ये मॉल वही जगह थी, जहां दोनों हर वेलेंटाइन डे पर घूमने आया करते थे। इस मॉल से उनकी कई यादें जुड़ी थी और एक–दूसरे से भी। आज वो भले साथ नहीं थे, लेकिन गुजरे वक्त में लौटकर थोड़ी खुशी जरूर महसूस हुई उन्हें।
स्वाति अंकित की ओर आगे बढ़ी, तो अंकित भी दौड़कर स्वाति की ओर भागा। मॉल में ऐसा लग रहा था, मानो कोई फिल्मी सीन चल रहा हो। दोनों पहले की तरह एक दूसरे को अपनी बाहों में भर लेना चाहते थे, कि इतने में पीछे से एक आवाज़ सुनाई दी।
“अंकित कहां रह गए?” ये आवाज अंकित की पत्नी शालिनी की थी। शालिनी स्वाति और अंकित के रिश्ते से अंजान थी। इसलिए अंकित को वहां से हाथ पकड़कर ले जाने लगी। स्वाति कहना तो बहुत कुछ चाह रही थी। लेकिन वो चुप ही रही। स्वाति यहां अकेली आई थी, हर साल की तरह अंकित को इस दिन याद करते हुए। आज अंकित मिला भी, लेकिन स्वाति की आज सारी उम्मीदें टूट गईं।
दिल और दिमाग में स्वाति
अंकित अब शालिनी के साथ होकर भी नहीं था। उसके दिल और दिमाग में स्वाति का ही ख्याल था। उसे पांच साल पुरानी अपनी गलती दोबारा याद आने लगी। जब उसने अपने घर वालों के दबाव में शालिनी से शादी को हां तो कर दी लेकिन स्वाति को कभी भूल नहीं पाया। इधर स्वाति अब भी उसका इंतजार कर रही थी।
अंकित शालिनी को एक शॉप पर छोड़कर स्वाति को ढूंढने निकल पड़ा। जब इधर उधर स्वाति कहीं नजर नहीं आई। तब अनायास ही उसके कदम उस म़ॉल के फेमस बिरयानी शॉप की ओर चल पड़े। दरअसल, स्वाति को बिरयानी बहुत पसंद थी और वो जब भी यहां आती बिरयानी जरूर खाती। और आज भी वैसा ही हुआ। स्वाति अपनी पसंदीदा बिरयानी आंखों में आंसू लिए खा तो रही थी, लेकिन उसके ख्यालों में सिर्फ अंकित ही थी।
अंकित स्वाति के पास आया और उसका हाथ पकड़कर बोला, “तुम प्लीज़ मुझे एक मौका दे दो, मैं सब ठीक कर दूंगा।” स्वाति ने रुहासे गले से पूछा अब क्या ठीक करना है। इस पर अंकित ने कहा , “मैंने शादी तो कर ली, लेकिन मैं कभी तुम्हें भूला नहीं पाया। क्या हम दोबारा एक साथ एक प्लेट में बिरयानी नहीं खा सकते।”
“सुनो तुम आज भी मेरा ही इंतजार कर रही होना?”
स्वाति बिल्कुल चुप थी, उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। वो वहां से उठकर जाने लगी। इतने में अंकित ने हाथ पकड़कर बोला, “सुनो तुम आज भी मेरा ही इंतजार कर रही होना?” इतना सुनते ही स्वाति अपने आंसुओं को नहीं रोक सकी और फूट–फूट कर रोने लगी। अंकित जवाब समझ गया था। लेकिन ये सब इतना आसान नहीं था।
अंकित कुछ और बोलता इतने में स्वाति बेहोश होकर जमीन पर गिर गई। अंकित को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे। उसने आस–पास लोगों से मदद मांगी। जब भीड़ जमा हुई, तो अंकित को पता लगा कि ये लड़की यहां रोज़ आती है। बिरयानी खाती है और अंकित के नाम एक चिट्ठी दुकान पर छोड़ जाती है। अंकित को दुकान वाला सारी चिट्ठियां थमा देता है।
स्वाति को अस्पताल पहुंचाया जाता है। साथ में अंकित भी बेसुध हालात में पहुंचता है। अस्पताल में डॉक्टर बताते हैं कि स्वाति किसी गंभीर मानसिक रोग की चपेट में है और कोई सदमा उसे लगा है, जिससे वो बेहोश हो गई है। इधर स्वाति के घरवाले भी अस्पताल पहुंचते हैं। वो अंकित को देखकर चौंक जाते हैं।
अंकित उन्हें नमस्ते करता है और वहां से बिना कुछ कहे चला जाता है। उसे स्वाति की लिखी चिट्ठियों को पढ़ने की जल्दी होती है। वो जैसे ही एक चिट्ठी पढ़ना शुरू करता है। उसकी आंखें नम हो जाती है, क्योंकि उस चिट्ठी में लिखा होता है, “ भगवान मुझे अंकित से मिलवा दो, और अगर नहीं मिलवा सको तो मेरी जान ले लेना।”
अंकित दौड़ कर अस्पताल फिर से भागता है, लेकिन वहां पहुंचते ही स्वाति की मौत की खबर उसे सुनने को मिलती है, क्योंकि स्वाति ने कई सारी अवसाद की गोलियां एक साथ ही खा ली होती हैं। अंकित और स्वाति का प्यार अधूरा रह गया, लेकिन स्वाति की वफादारी और अंकित के प्रति समर्पण ने अंकित को भी आज जीते–जी मार दिया।
नोट: ये कहानी मात्र काल्पनिक है और अगर आप भी किसी अवसाद से गुजर रहे हैं तो अपने डॉक्टर या सरकारी हेल्पलाइन या मोबाइल मेंटल हेल्थ यूनिट 011-22592818 का सहारा ले सकते हैं। याद रखें आत्महत्या किसी समस्या का समाधान नहीं है।
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