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महिलाएं लीडरशिप में पीछे क्यों रह जाती हैं?

आज तमाम तरक्की के बावजूद भी ये देखने को मिलता है कि महिलाएं नौकरी में तो फिर भी अपनी भागीदारी कर लेती हैं। लेकिन जब बात लीडरशिप की आती है, तो उनका प्रतिनिधित्व बेहद कम नज़र आता है। इसकी शायद एक बड़ी वजह ये है कि महिलाएं जैसेजैसे अपने कदम आगे बढ़ाती हैं, उन्हें ज्यादा विरोध का सामना करना पड़ता है। वो जैसेतैसे बड़े पोजीशन तक पहुंच भी जाएं, तो उन्हें वहां टिके रहने के लिए अच्छाखासा संघर्ष करना पड़ता है।

आपको बता दें कि फॉर्च्यून इंडिया और एसपी जैन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड रिसर्च की एक स्टडी से पता चलता है कि 500 लिस्टेड कंपनियों में से केवल 1.6 प्रतिशत में ही महिलाएं शीर्ष पर हैं। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के सहयोग से यह अध्ययन पूरा किया गया था। इसके लिए कई बड़े शहरों में राउंड टेबल चर्चा आयोजित की गई थी।

पारिवारिक जिम्मेदारियां

इस अध्ययन में एक और खास बात सामने आई की ज्यादातर महिला कर्मचारी पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते बीच में ही अपने काम छोड़ देती हैं। डेटा बताता है कि ये संख्या करीब 30-40 प्रतिशत है। हालांकि ये कोई नई बात नहीं है, और हाल के की और सर्वे में भी इस तरह के कारण सामने आते रहे हैं।

कई बार शादी के चलते महिलाएं अपने करियर के पीक पर ही अपनी नौकरी तक छोड़ देती हैं। इसके अलावा मैटरनिटी लीव, बच्चे की जिम्मेदारी के साथ कई कारण और भी हैं, जिसके चलते महिलाओं का दोबारा काम पर लौटना बहुत मुश्किल हो जाता है। यानी एक महिला को कई बार अपने पर्सनल लाइफ के चलते प्रोफेशनल लाइफ को कुर्बान करना पड़ता है।

पितृसत्ता सबसे बड़ी रुकावट

महिलाओं की टॉप लेवल पर कम भागीदारी का एक बड़ा कारण हमारा पितृसत्ता वाला समाज भी है, जो लड़कियों के आगे बढ़ने पर जगहजगह बंदिशें लगाने लगता है। महिलाओं को घर पहले का पाठ तो घरों में बचपन से ही पढ़ाया जाता है। लेकिन एक बड़ी सच्चाई ये भी है कि आगे चलकर यही महिलाएं अपनी शादी को बचाने के लिए तमाम कुर्बानियां देने में ज़रा भी नहीं हिचकतीं।

महिलाएं अक्सर अपने परिवार को पहले रखते हुए घर और ऑफिस दोनों जगह मैनेज करने की कोशिश करती हैं, जो कहीं न कहीं एक समय ओवरलोड, बर्डन लगने लगता है। ऐसे में महिलाओं को कई बार परिवार वालों का कोई सपोर्ट नहीं मिलता और आखिरकार वो नौकरी छोड़ने पर मजबूर हो जाती हैं।

इसमें कोई दो राय नहीं कि महिलाएं अब आगे बढ़ रही हैं, लेकिन एक सच्चाई ये भी है कि महिलाएं वर्क फोर्स से भी लगातार बाहर हो रही हैं। कोरोना ने की महिलाओं को काम पर दोबारा लौटने ही नहीं दिया, तो वहीं आर्थिक मंदी के दौर में महिलाओं को नौकरियां ढूंढने के लिे भी तमाम मशक्कत करनी पड़ रही है। सरकार महिलाओं के लिए कुछ कदम जरूर आगे बढ़ा रही है, लेकिन ये काफी नहीं हैं। इस दिशा में अभी और बहुत काम होना बाकी है।

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