संसद के विशेष सत्र इस बार महिलाओं के लिए भी विशेष रहा। लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों ने महिलाओं के आरक्षण बलि को मंजूरी दे दी है। अब ये बिल राज्य विधानसभाओं में जाएगा। जहां से पास होने के बाद राष्ट्रपति के हस्क्षार के साथ ही ये कानून बन जाएगा।
हालांकि इसके अमल का रास्ता अभी इतना भी आसान नहीं है क्योंकि इसमें जनगणना और परिसीमन का पेंच फंसा है। यानी महिला आरक्षण 2023 में आ तो गया लेकिन क्या ये 2024, 2029 या उसके बाद भी कब हक़ीकत बनेगा ये किसी को नहीं पता। क्योंकि परिसीमन एक संविधान संशोधन क्रिया है, जिसमें निर्वाचन क्षेत्र की सीमा तय की जाती है, जो कि साल 2001 में संविधान संशोधन करके साल 2026 तक के लिए फ़्रीज़ कर दिया गया है। इसलिए ये प्रक्रिया अब 2026 के बाद ही संभव है।
फिलहाल देश में जनगणना का मामला भी लटका है। ऐसे में 2026 के बाद 2031 में होने वाली जनगणना के आधार पर ही निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन और विस्तार किया जाएगा। परिसीमन आयोग को भी अपनी फ़ाइनल रिपोर्ट देने में कम से कम 3 से 4 साल का समय लगता है। ऐसे में सिर्फ 2024 के लोकसभा चुनाव ही नहीं 2029 के लोकसभा चुनाव और उसके आगे भी महिला आरक्षण लागू होना फिलहाल मुश्किल लगता है।
विपक्ष का आरोप और परिसीमन का सवाल
विपक्षी दल पहले ही सरकार पर आरोप लगा चुके हैं कि ये आरक्षण को अनिश्चितकाल तक बढ़ाने के पीछे बीजेपी सरकार की राजनीति है और आगामी चुनाव में महिला मतदाताओं के वोटों पर नज़र रखते हुए इसे लाया जा रहा है। हालांकि सरकार ने इसके पीछे पारदर्शिता की बात कही है, जिसमें संविधान में दी गई प्रक्रियाओं को पूरा करने के बाद ही इस आरक्षण को लागू करना उचित होगा।
लोकसभा में गृह मंत्री अमित शाह आरक्षण और परिसीमन के कनेक्शन पर कहा, “ये सीटें जो आरक्षित की जानी हैं, ये कौन तय करेगा? हम करें? अगर फिर वायनाड आरक्षित हो गया तो आप क्या करोगे? ओवैसी का हैदराबाद (सीट) आरक्षित हो गया तो? फिर हमको कहेंगे कि ये राजनीति की वजह से हुआ है. इसलिए यह बहुत अच्छा है कि एक परिसीमन आयोग ही इन निर्वाचन क्षेत्रों को आरक्षित करे।“
पारदर्शिता है सरकार का मकसद?
संसद में सत्ता पक्ष की ओर से विपक्ष को इस मामले में समझाने की लाख कोशिश की गई लेकिन ये तर्क न तो विपक्ष के सवालों का जवाब दे पाए ना ही आम लोगों के बीच परिसीमन और आरक्षण के मुद्दे पर कोई जोड़ बैठा पाए। लोगों के सवाल अब भी वही है कि सरकार अगर अच्छी नीयत से इस बिल को ले आई है, तो इसके लागू करने में इतने पेंच क्यों फंस रहे हैं। क्योंकि इससे पहले भी मोदी सरकार ने की बड़े फैसले लिए हैं, जिनकी समस्या का समाधान भी रातों–रात निकाला है।
मोदी सरकार के कार्यकाल में आपको कई ऐतिहासिक फैसले देखने को मिले हैं। फिर वो जम्मू–कश्मीर का मामला हो या राम मंदिर निर्माण का। नोटबंदी हो या जीएसटी सभी फैसले लोगों के सामने अचानक आए और तमाम विरोध के बावजूद लागू हुए।
बहरहाल, अगले साल 2024 के चुनाव में अब ज्यादा समय नहीं बचा ऐसे में ये बिल किसका फायदा करेगा और किसका नुकसान ये तो वक्त ही बताएगा। लेकिन इस बिल के आने से महिलाओं में एक उम्मीद तो जगी है। ये निश्चित तौर पर 2024 से पहले बीजेपी सरकार का मास्टर स्ट्रोक है, जिससे कोई इंकार नहीं कर सकता। हालांकि ये मास्टर स्ट्रोक उसे महिलाओं के दिल में जीत दिला पाता है या नहीं ये तो आने वाले चुनाव के परिणामों में ही पता लगेगा। जब तक आप महिला आरक्षण के बड़े–बड़े पोस्टर सड़कों पर देख सकते हैं।