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महिलाओं को अपने इन कानूनी अधिकारों के बारे में जरूर जानना चाहिए!

प्रख्यात नारीवादी कार्यकर्ता कमला भसीन अक्सर कहा करती थीं कि महिलाओं को संविधान ने बराबर का अधिकार दिया है। उन्हें पुरुषों के समान ही सम्मानजनक जीवन जीने का पूरा अधिकार है। लेकिन पितृसत्ता अपनी सत्ता को बरकरार रखने के लिए महिलाओं को वास्तव में उनके अधिकारों के बारे में जानने ही नहीं देती। शुरुआत से ही घर में लड़कियों को लड़कों से अलग परवरिश मिलती है। उन्हें धैर्य, त्याग और सहनशीलता का पाठ पढ़ाया जाता है। लेकिन लड़कों को हमेशा आजाद घूमने, जो मन करे करने की छूट होती है।

इसमें कोई दो राय नहीं कि पितृसत्ता ने महिलाओं को जितना पीछे धकेला है, पुरुषों की भावनाओं को भी उतना ही आहत किया है। पुरुष खुलकर रो नहीं सकता, अपने दर्द का इज़हार करते ही उसे कमज़ोर समझा जाने लगता है। उसका अपने जीवनसाथी के लिए प्यार को गुलामी का नाम दे दिया जाता है। वो अपने दकियानूसी विचारों से आज़ाद भी होना चाए, तो उसे मर्द होने का ढकोसला थमा दिया जाता है।

खैर, इस लेख में बात होगी महिलाओं के उन अधिकारों की जिसके बारे में उन्हें जानना बेहद जरूरी है। ये संवैधानिक अधिकार उनके सम्मान और सुरक्षा के लिए बनाए गए हैं। ताकि उन्हें प्रताड़ना से बचाया जा सके। उन्हें समाज में बराबरी का ह़क़ मिल सके।

घरेलू हिंसा से सुरक्षा का अधिकारएक लड़की अपने पिता के घर हो या पति के। उसे दोनों जगह हिंसा से सुरक्षा का अधिकार प्राप्त है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार देश में हर तीसरी महिला घरेलू हिंसा का शिकार होती है। इसमें शादीशुदा और गैरशादीशुदा सभी महिलाएं शामिल हैं। घरेलू हिंसा शारीरिक, मानसिक, या यौन टॉर्चर से जुड़ी हुई हो सकती है।

घरेलू हिंसा एक्ट 2005 के सेक्शन 3 के अनुसार, कोई भी काम या गलती जिससे शारीरिक, यौन, मौखिक या आर्थिक रूप से पीड़ित को नुकसान पहुंचे वो डोमेस्टिक वॉयलेंस एक्ट के अंतर्गत आता है। इसमें धमकी देना या गलत तरह से व्यवहार करना भी शामिल है। इसके तहत महिलाओं को ना सिर्फ पति, बल्कि परिवार के अन्य सदस्यों से भी बचाव मिलता है। अप इसकी शिकायत के लिए 100 नंबर पर पुलिस को फोन कर सकती हैं।

दहेज निषेध अधिनियम, 1961

हमारे देश में दहेज के खिलाफ सख्त कानून है। इस कानून के मुताबिक दहेज लेना और देना दोनों कानूनी अपराध है। इसके अलावा, अगर शादी के बाद महिला को दहेज के लिए परेशान किया जाता है, तो उसे प्रोटेक्शन देने के साथ ही ससुराल वालों पर केस भी दर्ज होता है। इससे जुड़े मामले में 3 साल की सजा सुनाई जा सकती है। दहेज प्रताड़ना से जुड़े हत्या या हत्या के प्रयास मामले में दोषी पाए जाने वालों को 7 साल से लेकर पूरे जीवन के लिए सजा सुनाई जा सकती है। घरेलू हिंसा एक्ट के तहत भी दहेज के खिलाफ आवाज उठा सकती हैं। इसके लिए आप किसी भी समय पुलिस की मदद ले सकती हैं।

आईपीसी की धारा 498A

भारतीय दंड संहिता की धारा 498 एक क्रिमिनल लॉ है जो क्रूर ससुराल वालों पर लगाया जाता है। इसके अंदर परिवार, रिश्तेदार, पति आदि के खिलाफ केस किया जा सकता है। इस कानून के तहत क्रूरता की परिभाषा भी बताई गई है। इसमें भी फिजिकल और मेंटल हैरेसमेंट शामिल है। यह एक गैर जमानती अपराध है, जिसमें तीन साल की सजा का प्रावधान है।

वर्किंग प्लेस या कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ कानून

ये क़ानून (POSH) कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न निवारण, प्रतिषेध और प्रतितोष अधिनियम 2013 के नाम से भी जाना जाता है। इस कानून में यौन उत्पीड़न की परिभाषा में शारीरिक और मौखिक के साथसाथ अभद्र भाषा का इस्तेमाल या इशारा भी शामिल हैं। वहीं अगर कोई किसी काम के एवज में सेक्शुअल फ़ेवर की मांग करता है और महिला के इनकार करने पर भेदभाव की धमकी देता है, तो ऐसी बातें भी इसमें शामिल है। अगर, दफ़्तर इस क़ानून के तहत कार्रवाई नहीं करता है तो कानून में 50,000 जुर्माने का भी प्रावधान किया गया है।

समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976

ये अधिनियम 8 मार्च अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के दिन1976 में पास हुआ था। इस कानून के तहत एक ही तरह के काम के लिए महिला और पुरुष दोनों को मेहनताना भी एक जैसा ही मिलना चाहिए। यानी समान कार्य का समान वेतन। यदि कोई महिला वेतन में भेदभाव महसूस करती है, तो वो संवैधानिक प्रावधान इक्वल रैम्यूनरेशन एक्ट के अंतर्गत अपील कर सकती है।

मैटरनिटी लाभ अधिनियम 1861

महिलाओं को नौकरी के दौरान अनिवार्य मातृत्व लाभ देने के मकसद से ये कानून बनाया गया है। इस कानून के तहत हर कामकाजी महिला को छह महीने के लिए मैटरनिटी लीव मिलती है और इस दौरान महिलाएं पूरी सैलरी पाने की हकदार होती हैं। यह कानून हर सरकारी और गैर सरकारी कंपनी पर लागू होता है। इसमें कहा गया है कि एक महिला कर्मचारी जिसने एक कंपनी में प्रेगनेंसी से पहले 12 महीनों के दौरान कम से कम 80 दिनों तक काम किया है, वह मैटरनिटी बेनेफिट पाने की हकदार है।

गौरतलब है कि हमारे देश में महिलाओं की सुरक्षा के लिए भारत सरकार ने 90 के दशक में राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) की स्थापना की। आयोग का प्राथमिक उद्देश्य महिलाओं के हितों और अधिकारों की रक्षा करना है। कोई भी महिला अपनी परेशानी के तहत यहां शिकायत दर्ज करवा सकती है। साथ ही महिलाओं के किसी भी अधिकार का उल्लंघन हो रहा हो, तो भी नेशनल कमीशन फॉर विमेन से मदद ली जा सकती है। राष्ट्रीय महिला अधिनियम आयोग का उद्देश्य महिलाओं की स्थिति में सुधार करना है और उनके आर्थिक सशक्तिकरण के लिए काम करना है।

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