मैं तैनू फ़िर मिलांगी, कित्थे ? किस तरह पता नई
शायद तेरे ताखियल दी चिंगारी बण के, तेरे केनवास ते उतरांगी
जा खोरे तेरे केनवास दे उत्ते, इक रह्स्म्यी लकीर बण के
खामोश तैनू तक्दी रवांगी…
भारत की लोकप्रिय कवयित्रियों में से एक अमृता प्रीतम को साहिर लुधियानवी से बेपनाह मोहब्बत थी. अमृता और साहिर का रिश्ता ताउम्र चला लेकिन किसी अंजाम तक न पहुंचा. उन्होंने अपनी इस कविता में साहिर के लिए अपने उसी प्यार का इज़हार करते हुए उनसे दोबारा मिलने की बात कही है. ये एक प्रेम की त्रासदी ही थी कि साहिर और अमृता के बीच अताह प्रेम होने के बावजूद वे कभी एक न हो सके. वहीं इमरोज़, जिन्होंने आखिरी समय तक अमृता का हाथ थामे रखा अमृता उन्हें अपना दिल कभी न दे सकीं.
अमृता और साहिर की बेपनाह मोहब्बत
अमृता अपनी आत्मकथा ‘रसीदी टिकट’ में बताती हैं कि किस तरह साहिर लाहौर में उनके घर आया करते थे और एक के बाद एक सिगरेट पिया करते थे. साहिर के जाने के बाद वो उनकी सिगरेट की बटों को दोबारा पिया करती थीं. इस तरह उन्हें सिगरेट पीने की लत लगी.
अमृता साहिर को ताउम्र नहीं भुला पाईं और इमरोज़ को भी इसका अंदाज़ा था. वो कहती थी कि साहिर एक तरह से आसमान हैं और इमरोज़ मेरे घर की छत! दुनिया में हर आशिक़ की तमन्ना होती है कि वो अपने इश्क़ का इजहार करें, लेकिन इस मामले में इमरोज़ बिल्कुल अलग थे कि उन्होंने कभी अमृता से अपने दिल की बात नहीं कही.
अमृता की ज़िंदगी के कई आयाम
31 अगस्त 1919 को पाकिस्तान में जन्मी अमृता की ज़िंदगी के कई आयाम थे. कभी वो बिन मां की बच्ची रहीं, तो कभी साहिर के प्यार में डूबी प्रेमिका. कभी अमृता की कलम महिलाओं के लिए क्रांति लिखती थी, तो कभी उनके भीतर की उदासी. अमृता प्रीतम का जीवन कई दुखों और सुखों से भरा रहा. हालांकि, अमृता निराश होकर भी अपने शब्दों से उम्मीद दिलाती हैं जब वो लिखती हैं-
‘दुखांत यह नहीं होता कि ज़िंदगी की लंबी डगर पर समाज के बंधन अपने कांटे बिखेरते रहें और आपके पैरों से सारी उम्र लहू बहता रहे
दुखांत यह होता है कि आप लहू-लुहान पैरों से एक उस जगह पर खड़े हो जाएं, जिसके आगे कोई रास्ता आपको बुलावा न दे.’
अमृता कलम की सिपाही थीं, जिन्होंने पंजाबी और हिंदी में कई कविताएं और उपन्यास लिखे. उनकी लेखनी ने महिलाओं के दर्द को बयांं किया, उन्हें आगे बढ़ने और संघर्ष के रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित किया. वे स्त्री मन को बेहद ख़ूबसूरती से टटोलते थीं.
साहिर और इमरोज़ के किस्सों से तो शायद अमृता को हर कोई जानका है, लेकिन उनकी दुनिया इससे बढ़के उनकी लेखनी थी. जो हर सुखऔऱ दुख के पहलू को अपने भीतर समेटे निरंतर चलती रही.