बॉलीवुड के गुजरे जमाने की दिलकश और बेहद खूबसूरत अदाकारा वहीदा रहमान को भारतीय सिनेमा में उनके अतुलनीय योगदान के लिए दादा साहेब फाल्के लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया जाएगा। वहीदा रहमान ने महज़ 17 बरस की उम्र में अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की थी। वो साल 1955 था, जब वहीदा को पहली बार लोगों ने बड़े पर्दे पर देखा था।
वहीदा रहमान ने एक बार सिनेमा में कदम रखा, तो मानो बस यहीं की होकर रह गईं। वो लगभग पांच दशकों तक फिल्मों से जुड़ी रहीं। वो अब भी कभी कभार किसी फिल्म न किसी फिल्म में नज़र आ ही जाती हैं। वैसे वहीदा को छोटे–पर्दे यानी टेलीविजन शोज़ में भी कई बार देखा जाता है। वो आज भी स्क्रीन पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने में पीछे नहीं रहतीं।
बात करें वहीदा रहमान के फिल्मों की तो, उन्होंने सिनेमा जगत के लिए एक से बढ़कर एक जबरदस्त फिल्मों में काम किया है। गाइड, प्यासा, साहब बीबी और गुलाम, दिल्ली-6, कागज के फूल और न जाने कितनी ही अनगिनत फिल्म उनके पिटारे का खजाना हैं। उनकी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर तो कमाल करती ही थीं। साथ ही वो लोगों के दिलों में भी एक खास जगह बना लेती थीं।
केंद्रीय मंत्री ने गिनाई उपलब्धियां
मौजूदा दादा साहेब फाल्के लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड पुरस्कार उन्हें सरकार द्वारा उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए दिया जा रहा है। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने मंगलवार, 26सितंबर को खुद इसकी घोषणा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर की।
अनुराग ठाकुर ने वहीदा रहमान के लिए एक प्यारा पोस्ट भी लिखा, जिसमें उन्होंने अपनी खुशी का इज़हार करते हुए कहा, ” इस साल के प्रतिष्ठित दादा साहब फाल्के लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से वहीदा रहमान जी को उनके भारतीय सिनेमा में शानदार योगदान के लिए सम्मानित किया जा रहा है। क्रिटिक्स द्वारा वहीदा जी को हिंदी फिल्मों में उनकी भूमिकाओं के लिए सराहा गया है। उनकी फिल्म ‘प्यासा’, ‘कागज के फूल’, ‘चौदहवी का चांद’, ‘साहेब बीवी और गुलाम’, ‘गाइड’, ‘खामोशी’ समेत कई अन्य फिल्में हैं। अपने 5 दशकों से ज्यादा के करियर में, उन्होंने अपने किरदार को बेहद खूबसूरती से निभाया है। इसी कारण उन्हें फिल्म ‘रेशमा और शेरा’ में एक कुलवधू की भूमिका के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला।”
केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने आगे बधाई देते हुए संसद द्वारा पास नारी शक्ति वंदन अधिनियम का जिक्र किया। उन्होंने लिखा कि पद्म श्री और पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित, वहीदा जी ने एक भारतीय नारी के डेडिकेशन, सट्रेंथ और कमिटमेंट का उदाहरण पेश किया है जो अपनी कड़ी मेहनत से प्रोफेशनल लेवल पर भी ऊंचाइयों को छू सकती है। ऐसे समय में उन्हें इस लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया जाना भारतीय सिनेमा की अग्रणी महिलाओं में से एक के लिए एक सच्चा सम्मान है और जिन्होंने फिल्मों के बाद अपना जीवन भलाई के लिए समर्पित किया और समाज के भले के लिए काम किया।
वहीदा का फिल्मी करियर
वहीदा रहमान का फिल्मी सफर 1955 में तेलगु सिनेमा ‘जयसिम्हा’ से शुरू हुआ और नए जमाने की मूवी रंग दे बसंती, दिल्ली 6, लव इन बॉम्बे, विश्वरूपम तक बदस्तूर जारी है। वहीदा रहमान की अदाकारी का बात करें, तो उनके बारे में कहा जाता है कि ये उनका जलवा था कि उस समय के अधिकांश बड़े अभिनेता उनके साथ काम करना चाहते थे।
सभी फिल्मी भिनेताओं में से देव आनंद साहब के साथ वहीदा रहमान की जोड़ी खूब जमी थी। दोनों ने हिंदी फिल्म जगत को पांच सुपरहिट फ़िल्में दी थीं। उनके पूरे करियर में 1960 का दशक वहीदा रहमान के कैरिएर के लिए बेहद सफल माना जाता है। इस दौरान उनकी कई फिल्में सूपरहिट हुईं। हालांकि असफलताएं भी वहीदा की झोली में कम नहीं रही। 1966 में ‘तीसरी कसम’ और साल 1971 में ‘रेशमा और शेरा’ का बॉक्स–ऑफिस पर असफल होना, उनके लिए किसी सदमे से कम नहीं था। इसके बावजूद वहीदा ने कभी हार नहीं मानी, वो डटी रहीं और बिना पीछे मुड़े आगे बढ़ती रहीं।