विश्व रेडियो दिवस: जानिए सईदा बानो को, जो देश में रेडियो की पहली महिला आवाज़ थीं

ये तो हम सभी जानते हैं कि हर साल 13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस मनाया जाता है। इस दिन को मनाने के पीछे का मकसद, रेडियो के योगदान के महत्व को लोगों के बीच रखना है। क्योंकि आजकल की एडवांस दुनिया में एक बड़ा तबका है, जो रेडियो के इतिहास से रूबरू नहीं है। और इस तबके को रेडियो किसी का माध्यम नहीं लगता। ऐसे में इस दिन की अहमियत और बढ़ जाती है।

इसमें कोई दो राय नहीं कि रेडियो का स्वर्णिम इतिहास रहा है और आजादी की लड़ाई में इसकी अहम भूमिका रही है। विश्वयुद्ध के दौरान रेडियो के योगदान को भला कौन भूल सकता है। दुनिया का इतिहास छोड़ दें, तो भारत में आकाशवाणी यानी ऑल इंडिया रेडियो के महत्व को भला कौन नकार सकता है। इसकी स्थापना ब्रिटिश शासन काल के समय भारत में साल 1936 में हुई थी।

रेडियो सूचना का महत्वपूर्ण माध्यम

अपनी स्थापना से लेकर आज के मौजूदा दौर तक ऑल इंडिया रेडियो सूचना का एक महत्वपूर्ण माध्यम बना हुआ है। देश के सुदूर कोनेकोने में आकाशवाणी की तरंगे गूंजती हैं। और यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यहीं से अपनी मन की बात करते हैं। विजयगाथा से लेकर शोकसंदेश तक, देश के आंतरिक मामलों से लेकर दुनिया के जरूरी मंचों तक आकाशवाणी की संजीदगी से भरी रिपोर्टिंग बाकी माध्यमों के लिए भी एक मिसाल है।

आकाशवाणी लैंगिक समानता स्थापित करने में भी प्रेरणास्त्रोत रहा है। यहां बड़ी संख्या में महिला प्रसारणकर्ता, रिपोर्टर और कर्मचारी हैं। गुजरे जमाने की बात करें, तो ऑल इंडिया रेडियो ने अपनी स्थापना के एक दशक बाद ही साल 1947 में देश को पहली महिला न्यूज रीडर सईदा बानो की आवाज़ में देशवासियों को समाचार सुनवाया। कई लोगों के मन में ये सवाल जरूर हो सकता है कि आखिर एक महिला को रेडियो तक पहुंचने में लगभग 10 साल का समय कैसे लग गया। तो इसका जवाब है कि उस समय नौकरी में महिलाओं की भागीदारी जरूर थी, लेकिन बहुत सीमित।

सईदा बानो - एक स्वतंत्र एवं बेबाक़ शख़्सियत जो भारत की पहली महिला रेडियो  न्यूज़ रीडर बनीं

दुनियाभर में थे उनकी आवाज़ के कायल लोग

खैर, इस लेख में बात करेंगे, देश की पहली रेडियो न्यूज़ रीडर सईदा बानो की। सईदा का जन्म भोपाल में हुआ था। लेकिन उनकी आवाज़ के कायल लोग दुनियाभर में थे। सईदा के संस्मरण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि उन्हें सरहद पार से खत मिलते थे। लोग उन्हें रेडियो पर समाचार पढ़ते सुनने के लिए उत्सुक थे और उनके काम की खूब सराहना भी करते थे। हालांकि ये सब सईदा के लिए इतना आसान भी नहीं था।

झीलों के शहर भोपाल में सईदा बानो का जन्म साल 1920 में हुआ था। उनका ज्यादातर शुरुआती जीवन लखनऊ और भोपाल के शहरों में ही बीता था। जैसा कि सभी को ज्ञात ही है कि उस समय महिला शिक्षा को ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता था। लेकिन सईदा इस मामले में खुशकिस्मत थी क्योंकि सईदा के पिता उन्हें बहुत पढ़ाना चाहते थे।

स्कूली शिक्षा के बाद साईदा बानो ने अपनी आगे की पढ़ाई के लिए लखनऊ का रूख किया। उन्होंने ने लखनऊ के इसाबेला थोबर्न कॉलेज से ग्रेजुएशन की। और महज़ 17 साल की उम्र में उनका निकाह लखनऊ के जज अब्बास रज़ा के साथ हो गया। हालांंकि सईदा की किस्मत यहां भी अच्छी निकली और उन्हें अपने ससुराल से पारिवारिक प्यार और तवज्जों दोनों मिले। लेकिन कुछ समय बाद ही सईदा को उनके मौजूदा हालात में घुटन महसूस होने लगी।

उनके संस्मरण में वह लिखती हैं, “जब मैं रोना चाहती, मुझे मुस्कुराना पड़ता।दरअसल, सईदा ख़ुद को परंपरागत ढाँचे में क़ैद नहीं कर पा रही थी और फिर लगभग शादी के दस साल बाद 1947 में उन्होंने अपने पति अब्बास रज़ा से अलग होने का फैसला लिया और अपने दोनों बच्चों के साथ दिल्ली आ गईं।

सईदा बानो - एक स्वतंत्र एवं बेबाक़ शख़्सियत जो भारत की पहली महिला रेडियो  न्यूज़ रीडर बनीं

उनके संघर्ष की कहानी लाखों महिलाओं के लिए प्रेरणा 

ऐसा कहा जाता है कि जब सईदा दिल्ली पहुंची तो उनके पास कुछ भी नहीं था। उस समय सईदा बानो ने दिल्ली में ऑल इंडिया रेडियो में उर्दू समाचार पढ़ने के लिए आवेदन किया। सौभाग्य से उस वक्त उनकी दोस्त रही गायिका विजयलक्ष्मी पंडित के कहने पर ही सईदा बानो को आकाशवाणी के दिल्ली कार्यालय में नौकरी भी मिली गई। और इसी के साथ सईदा भारत की पहली समाचार वाचिका बन गईं। 13 अगस्त को सईदा ने अपना पहला समाचार बुलेटिन उर्दू में सुबह 8 बजे पढ़ा।

बस इसके बाद सईदा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और उनके संघर्ष की कहानी लाखों महिलाओं के लिए प्रेरणा बन गई। आपको बता दें कि सईदा से पहले ऑल इंडिया रेडियो की आवाज़ में किसी महिला की आवाज़ शामिल नहीं थी। सईदा बानो ने जीवन भर रूढ़िवादी विचारों को चुनौती दी। उन्होंने आलोचनाओं की परवाह न करते हुए अपने जीवन को अपने तरीके से जिया।

दिल्ली आने के बाद सईदा की दुनिया बदल गई। यहां काम के साथ उन्हें पहचान भी मिली। उनकी मुलाकात बहुत से लोगों से हुईं जिनमें पंडित जवाहर लाल नेहरू, मदन मोहन मालवीय आदि शामिल थे। बेगम अख्तर से उनकी अच्छी दोस्ती रही। साल 2001 में सईदा ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया लेकिन बीबी‘ (सईदा को लोग प्यार से बीबी कहते थे) रेडियो और महिलाओं के इतिहास में हमेशा के लिए अमर ही रहेंगी।

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