औरतों के ‘घर के काम’ को मुफ्त क्यों समझा जाता है, इसका हिसाब कौन देगा?

“जिस दिन औरतें अपने श्रम का हिसाब मांगेंगी, उस दिन मानव इतिहास की सबसे बड़ी और सबसे पुरानी चोरी पकड़ी जाएगी।” रोजा लक्जमबर्ग की ये पंक्तियां हमारे समाज की एक गंभीर सच्चाई को उज़ागर करती हैं, जहां महिलाओं के घरेलू श्रम को एकदम से नकार दिया जाता है। पूरा दिन घर के कामों में लगे…

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महिलाएं छुट्टी वाले दिन भी ‘छुट्टी’ पर क्यों नहीं होतीं?

किसी ने सही कहा है कि महिलाएं काम से लौटकर भी काम पर ही लौटती हैं। ये दोहरे काम का संघर्ष महिलाओं को अपने प्रति लापरवाह और असंवेदनशील बनाता जा रहा है। वो रोज़ बिना रुके, बिना थके पूरे घर का तो ध्यान रख लेती है, लेकिन जब बात उसके अपने काम की आती है,…

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