केरल हाई कोर्ट को क्यों कहना पड़ा की लड़कियां मां या सास की गुलाम नहीं?

एक रूढ़िवादी समाज में अक्सर औरतें पितृसत्ता की भेंट चढ़ जाती हैँ। उनके रहने, खानेे, पसंद, नापसंद सब पर उनके परिवार का दबाव होता है। उनके जीवन से जुड़े तमाम विचारों, उम्मीदों और अनेकों संभावनाओं को खोजने की बजाय उन्हेें कमजोर श्रेणी में ला कर उनके हर फैसले के लिए दूसरों पर आश्रित कर दिया…

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महिलाओं का फेमिनिस्ट होना ‘बुरा’ क्यों माना जाता है?

अक्सर आप सुनते ही होंगे कि ये फेमेनिस्ट जहां देखो अपना झंडा लेकर चल देती हैं। घर तोड़ना, महिलाओं को भड़काना और उन्हें बहकाना इनका काम है। ताने कई बार ऐसे भी मिलते हैं कि औरतों को काम से बचना हो तो फेमिनिज्म का हथियार मिल जाता है। इन्हें ऐसे तो फेमिनिज्म सुझता है, लेकिन…

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औरतों के ‘घर के काम’ को मुफ्त क्यों समझा जाता है, इसका हिसाब कौन देगा?

“जिस दिन औरतें अपने श्रम का हिसाब मांगेंगी, उस दिन मानव इतिहास की सबसे बड़ी और सबसे पुरानी चोरी पकड़ी जाएगी।” रोजा लक्जमबर्ग की ये पंक्तियां हमारे समाज की एक गंभीर सच्चाई को उज़ागर करती हैं, जहां महिलाओं के घरेलू श्रम को एकदम से नकार दिया जाता है। पूरा दिन घर के कामों में लगे…

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सुंबुल तौकीर का ‘काव्या’, सीरियल से बढ़कर हमारे समाज का आईना है!

इमली (Imlie) फेम सुंबुल तौकीर खान (Sumbul Touqeer Khan ) एक बार फिर पर्दे पर अपने दमदार शो काव्या (Kavya- Ek Jazbaa, Ek Junoon) के साथ लौटी हैं। काव्या में वो एक आईएएस अफसर की भूमिका में नज़र आ रही हैं। जिसे अपने सपने के लिए बहुत कुछ पीछे छोड़ना पड़ता है। हर घड़ी एक…

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