घरेलू हिंसा : सिर्फ मारपीट ही नहीं, मेंटल टार्चर भी है अपराध

घरेलू हिंसा (Domestic Violence) सिर्फ घरेलू मामला नहीं है। ये समझने के लिए अभी भी हम भारतीय महिलाएं बहुत पीछे हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि बचपन से लड़कियों की तरबीयत ही ऐसे की जाती है कि इसमें शिकवेशिकायत की कोई जगह ही नहीं होती। लड़कियों को केवल सहना और चुपचाप रहना सिखाया जाता है। उन्हें संस्कारों के ढकोसलों में बांध कर आजीवन कैद कर दिया जाता है।

कई आंकड़े बताते हैं कि हमारे देश में हर तीन में से एक महिला घरेलू हिंसा का शिकार है। लेकिन क्या आपको ऐसा लगता है कि इनती महिलाएं कानूनी मदद तक पहुंच पाती हैं। उनके मामले दर्ज हो पातेे हैं, तो इसका जवाब है नहीं। क्योंकि हमारे देश में कुल मामलों में केवल 10 प्रतिशत मामले ही पुलिस थानों तक पहुंच पाते हैं। उनमें से भी अधिकतर सालों अदालतों के चक्कर काटते रहते हैं या कुछ समझौता कर केस ही वापस हो जाते हैं।

आप के मन में ये सवाल जरूर उठ रहा होगा कि घरेलू हिंसा इतने बड़े पैमाने पर कैसे हो रही है। क्योंकि शायद आपके आसपास तो सब कुछ ठीक ही नज़र आता है। तो इसका जवाब भी बहुत आसान हैै कि घरेलू हिंसा में हमेशा घर के लोग शामिल होते हैं, इसलिए कभी इज्जत के नाम पर तो डर के साये में, कभी रिश्ते निभाने की मजबूरी तो कभी परिवार के दबाव के चलते ये मामले बाहर ही नहीं आ पाते।

शोषण ज्यादातर मीडिल क्लॉस परिवारों में होती है

आमिर खान के शो सत्यमेव जयते में जानीमनी फेमीनिस्ट कमला भसीन ने कहा था, “शोषण, हिंसा ज्यादातर मीडिल क्लॉस परिवारों में होती है और यहीं औरतें इसे अपने मेकअप या दुपट्टे से बहानों की लागलपेट में छुपा भी लेती हैं। ऐसा नहीं कि ये मामले उच्च या निम्न वर्गीय परिवारों में नहीं हैं, वहां भी हैं लेकिन वहां आंकड़े कम हैं।

अब सवाल आता है कि आखिर महिलाओं को इसस् मुक्ति पाने के लिए क्या करना चाहिए। तो इसका सीधा सा जवाब हमारे कानून में घरेलू हिंसा एक्ट 2005 है। ये एक ऐसा कानून है, जो महिलाओं की सुरक्षा और हितों को ध्यान में रखकर बनाया गया है। इसके तहत आप पुलिस थाने में अपने साथ हो रही हिंसा के खिलाफ आवाज़ उठा सकती हैं। शुरुआती तौर पर अगर आपके साथ घरेलू हिंसा हो रही है, तो आप उसकी शिकायत 100 नंबर पर फोन करके भी कर सकती हैं।

घरेलू हिंसा एक्ट 2005 वैसे तो शादीशुदा महिलाओं के लिए बेस्ट है लेकिन अगर आपकी शादी नहीं भी हुई है और आप अपने मातापिता, किसी रिश्तेदार या लिवइन में रहती हैं, तो भी ये कानून आपको सुरक्षा का हक़ और शिकायत का आधार प्रदान करता है। इसके कानून के तहत महिलाओं को ना सिर्फ उनके पति, बल्कि परिवार के अन्य सदस्यों से भी बचाव मिलता है।

अगर आपकी शादी में दहेज सबसे बड़ा विवाद है, तो आप दहेज निषेध अधिनियम, 1961 कानून का भी सहारा ले सकती हैं। ये कानून दहेज लेना और देना दोनों पर कानूनी अपराध बनाता है। अगर आपको दहेज को लेकर किसी भी तरह से परेशान किया जा रहा है, तो आप इस कानून की मदद ले सकती हैं। साथ ही ये आपको प्रोटेक्शन भी देता है, परिवार वालों से ससुरालवालों से।

इसके अलावा आप हिंसा से बचाव के लिए IPC के सेक्शन 498A का भी सहारा ले सकती हैं। ये एक क्रिमिनल लॉ है, जो क्रूर ससुराल वालों पर लगाया जाता है। इसके अंदर फिजिकल और मेंटल हैरेसमेंट परिवार, रिश्तेदार, पति आदि के खिलाफ केस किया जा सकता है। ये कानून एक तरह से महिलाओं के लिए ढाल का काम करता है।

घरेलू हिंसा में क्याक्या शामिल है?

इन तमाम कानूनों में आगे बढ़ने से पहले आपको ये समझना होगा कि घरेलू हिंसा में क्याक्या शामिल है। कानून की नज़रों में इसकी परिभाषा क्या है। ज्यादातर लोगों को लगता है कि सिर्फ मारपीट ही घरेलू हिंसा है। जब तक कोई मारपीट नहीं हो रही सब सही है, लेकिन ये गलत है सिर्फ सेक्सुअल या फिजिकल हिंसा ही हिंसा नहीं होती बल्कि मेंटल टॉर्चर यानी मानसिक प्रताड़ना और आर्थिक तौर पर नुकसान पहुंचाना भी घरेलू हिंसा के दायरे में आता है।

आसान भाषा में समझें, तो यदि कोई आपके साथ सही व्यवहार नहीं करता। आपको दिनरात अपनी हरकतों से परेशान करता है। गलत तरीके से पुकारता है या गालियां देता है। डराना, धमकाना, डॉमिनेटिंग व्यवहार दिखाना, हमेशा बेइज्जती करना भी हिंसा के अंतर्गत आता है। इसके साथ ही अगर महिलाओं को काम करने से रोका जाता है, उनका आर्थिक नुकसान या गुजारे के लिए पैसे मुहैया नहीं करवाए जाते या फिर उसे जबरन घर से निकाल दिया जाता है, तो ये सब भी हिंसा के दायरे में आता है।

अब क्योंकि हमारी अदालतों के फैसले पूरी तरह ग्वाहों और सबूतों पर आधारित होते हैं, इसलिए सबसे पहले तो पीड़ित महिला को सबूत के तौर पर अपना मेडिकल सर्टिफिकेट देता होता है। अब अगर आप उस वक्त शिकायत ना करवा कर बाद में केस फाइल कर रही हैं, तो हिंसा के बाद ही किसी सर्टिफाइड डॉक्टर से मेडिकल जरूर करवा लें और सर्टिफिकेट ले लें, ताकि बाद में आपको परेशानी न हो।

इसके अलावा अगर आप हिंसा का कोई वीडियो टेप, फोटो या टेक्स्ट मैसेज रख पाएं तो ये और अच्छा होगा। आपके पड़ोसियों या परिवार वालों के स्टेटमेंट भी कोर्ट में सबूत के तौर पर दिखाए जा सकते हैं। साथ ही अगर आपने लीगल हॉटलाइन (100 नंबर) पर शिकायत के लिए कॉल किया हो तो उसकी रिकॉर्डिंग भी अवश्य रखें। अपने बयान को जरूर दर्ज करवाएं और शरीर की चोटों को भी दिखाएं।

यहां ध्यान रखें कि कोर्ट में सबूत दोनों पक्षों से मांगे जाते हैं ताकि केस में कोई झूठा आरोप ना लगाया जा सके। इसलिए अपने पक्ष को मजबूत रखने के लिए पहले से सारे सबूतों को बिना गलती के जा कर लें। इस मामले में देर सही नहीं है। और सहना इसका कोई उपाय नहीं है, इसलिए अपने खिलाफ हो रही हिंसा को और बल देने के बजाय इसके खिलाफ जोरदार तरीके से आवाज उठाएं। इस बात से बिल्कुल न डरे की आपकी शिकायत के बाद आपके साथ क्या होगा, आपका खर्चापानी कैसे चलेगा या आपसे आपका घर भी छिन जाएगा। पुलिस, अदालत और महिला आयोग इस तरह की पीड़िताओं के लिए तमाम उपाय करती हैं, साथ ही घर पर भी आपको पूरा प्रोटेक्शन मुहैयै करवाया जाता है। इसलिए डरिए नहीं, आगे बढ़िए।

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