मध्य प्रदेश: महिला स्पेशल बसों से औरतों का कॉलेज और ऑफिस जाना हुआ आसान

मध्य प्रदेश परिवहन की पहल पर राज्य के कई शहरों में अब महिला स्पेशल पिंक बसों का कॉन्सेप्ट शुरू हो गया है। ये बसें महिलाओं के सफर को आसान बनाने के मकसद से शुरू की गई हैं। इससे लड़कियों का कॉलेज आनाजाना आसान हो गया है। अब उन्हें सुबह जल्दी या देर रात ट्रेवल करने में कोई डर नहीं लगता। कामकाजी महिलाओं की बात करें, तो य बसें उनके लिेए भी एक वरदान ही साबित हो रही हैं।

क्या खास है इन बसों में?

इन पिंक बसों का खास बात है कि इसमें ड्राइवर से लेकर टिकट चेकर सभी महिलाएंं ही हैं। इन्हें खास महिलाओं की सुरक्षा के लिहाज़ से तैयार किया गया है। इसमें सीसीटीवी कैमरा, पेनिक बटन और जीपीएस सिस्टम भी है। ये सिर्फ महिला सवारियों को ही लेती हैं और अमूमन हर 10 मिनट के अंतराल पर किसी भी बस स्टॉप से मिल जाती हैं। इसका सफल प्रयोग इंदौर में पहले ही हो चुका है।

ताजा जानकारी के मुताबिक मध्य प्रदेश सरकार इंदौर के बाद अब राज्य के 20 और शहरों में पिंक बसें शुरू करने जा रही है। सबसे पहले इंदौर नगर निगम ने प्रायोगिक तौर पर दो पिंक बसें शुरू भी कर दी है। जबकि 16 नगर निगमों सहित भिंड, गुना, शिवपुरी, विदिशा में भी पिंक बसों की व्यवस्था शुरू करने के निर्देश शासन की तरफ से दिए गए हैं। माना जा रहा है कि अभी तक इंदौर में चल रही पिंक बसों में रोजाना 500 से अधिक महिलाएं सुरक्षित सफर कर रही हैं।

कैसे आसान हुआ सफर?

मध्य प्रदेश की कई महिलाओं ने वायरल नारी को बताया कि ये सरकार का एक स्वागत योग्य कदम है। इससे महिलाएं अब बेझिझक आराम से सफर कर सकती हैं। ये बसे अभी नई भी हैं और इनमें भीड़ भी कम होती है। इसलिए इससे सफर अधिक आरामदायक महसूस होता है। इन बसों की सबसे बड़ी यूएसपी इसमें तैनात महिला कर्मियों का स्टाफ है, जिसे देखकर औरतें रातबिरात भी चैन से सफर कर सकती हैं।

कई कॉलेज जाने वाली लड़कियों का कहना था कि पहले कॉमन बसों में अक्सर उन्हें सीट के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती थी। लेकिन अब उन्हें इससे राहत मिल जाएगी। इसके अलावा बसों में पुरुषों का घूरना, छेड़छाड़ करना जैसी बड़ी समस्याओं से भी छुटकारा मिल जाएगा। जिससे वो बहुत खुश हैं।

गौरतलब है कि ये बसें और महिलाओं को कॉलेज और ऑफिस की ओर कदम बढ़ाने में सहायता करेंगी। इसके अलावा बस ड्राइवर और कंडक्टर के तौर पर इसमें महिलाओं के रोज़गार के अवसर भी खुल रहे हैं। जो अपने आप में एक बड़ी बात है। कई संस्थाओं ने इसमें पहल की है, जो जो महिलाओं को ड्राइविंग की ट्रेनिंग देकर आत्मनिर्भर बना रही है।

महिलाओं को रोज़गार

खबरों की मानें तो, आरटीओ का कहना है कि कुछ वर्ष पहले तक काफी कम संख्या में महिलाओं के लाइसेंस बनवाने के आवेदन आते थे। लेकिन अब बीते चार वर्षों से महिलाओं के आवेदन की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। बीते दो साल ही में लगभग 50 हजार लाइसेंस महिलाओं के बने हैं। इनमें कमर्शियल लाइसेंस भी शामिल हैं। यानी सरकार की पहल और महिलाओं को रोज़गार की ओर ले जा रही है, उन क्षेत्रों में भी जहां पहले से पुरुषों का वर्चस्व है।

कहा भी जाता है कि महिलाएं तभी असल में सुरक्षित और आत्मनिर्भर होगीं, जब वो ज्यादा संख्या में खुद आगे आएंगी। महिलाओं की समस्या का निवारण असम में महिलाओं की भागीदारी में ही छीपा है। इसलिए इस स्पेशल बस सेवा के एक साथ दो फायदे हैं। एक तो महिलाओं को सुरक्षित यात्रा का माहौल प्रदान करना। वहीं दूसरी ओर महिलाओं के लिए और रोज़गार के अवसर पैदा करना। ये मॉडल और राज्य भी भविष्य में लागू कर सकते हैं।

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