अंग्रेजी की एक बड़ी फेमस कहावत है “Justice delayed is justice denied” यानी न्याय में देरी, न्याय न मिलने के समान है। ये कहावत भारतीय अदालतों की न्याय व्यवस्था पर एक दम सटीक बैठती है। यहां सालों साल मुकदमे पुलिस थाने और अदालतों के बीच घुमते रहते है। कई बार तो दशकों बीत जाते हैं, लेकिन इंसाफ नहीं मिल पाता। ये बातें सिर्फ कहने की नहीं है बल्कि नेशनल ज्यूडिशियल डाटा ग्रिड के हालिया जारी आंकड़े भी इस बात की तस्दीक करते हैं।
देश में महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध से हर कोई वाकिफ है। इसके रोज़ाना कई मामले तो अखबारों की सुर्खियां ही होते हैं। ऐसे में पहले से हताश निराश पीड़िता जब अपने जख्मों के साथ न्याय की आस लिए थाने पहुंचती है। तो वहां भी उसे अलग तरह से प्रताड़ना सहनी पड़ती है। उसके जख्मों पर मरहम के बजाय कई बार उसे और कुरेदा जाता है।
किसी तरह अगर पुलिस मुस्तैदी से मामला आगे अदालत भी पहुंच जाए और आरोपी गिरफ्तार भी हो जाएं तो अदालत की तारीख पर तारीख उसकी हिम्मत का और इम्तिहान ही लेती है। कई बार उसके हौसले पस्त हो जाते हैं, तो कई बार उसकी न्याय की उम्मीद टूट जाती है। और शायद यही कारण है कि बड़ी संख्या महिला अपराध के मामले थाने पहुंचते ही नहीं। क्योंकि यहां न्याय की उम्मीद कम, इंसाफ का इंतज़ार ज्यादा होता है।
महिलाओं से जुड़े 36.57 लाख मामले पेंडिंग
हालिया जारी नेशनल ज्यूडिशियल डाटा ग्रिड आंकड़े देखें तो इस समय भारतीय आदालतों में लगभग 4.44 करोड़ से अधिक केस लंबित हैं। इन में से करीब 36.57 लाख केस अकेले महिलाओं के मामले से जुड़े हैं, यानी महिला अपराध, अत्याचार से जुड़े हैं, जो इंसाफ के लिए तरस रहे हैं। ये आंकड़ों में देश के टॉप-20 राज्यों से लिया गया है औ ये 6 अक्टूबर 2023 तक की जानकारी देते हैं। इन लटके मामलों में देरी के भी कई कारण बताए गए हैं। जिनमें प्रमुख वजह अदालत में वकीलों का पेश नहीं होना है।
राज्यों में सबसे अधिक पेंडिंग मामले उत्तर प्रदेश की आदालतों में हैं। जहां, 7,90,938 मामले लंबित हैं। वहीं इस लिस्ट में दूसरे नंबर पर महारष्ट्र है, जहां 3,96,010 मामले न्याय के इंतजार में हैं। बिहार में ये आंकड़ा करीब 3,81,604 का है, तो वहीं बंगाल में 2,60,214 और कर्नाटक में 2,22,587 अदालतों में इंसाफ की गुहार लगा रहे हैं।
इन मामलों के पेंडिंग होने में पुलिस चार्जशीट से लेकर जांच का समय बढ़ाने की मांग और दस्तावेज कोर्ट में जमा नहीं करने के कारण भी शामिल हैं। इसके अलावा अदालतों की बार–बार लंबी डेट भी है, जिससे आरोप तय होने में ही काफी समय लग जाता है।
कई अदालतों ने जताई चिंता
अदालतों में पेंडिंग पड़े मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट से दिल्ली हाई कोर्ट और कई अन्य अदालतें अपनी चिंता जाहिर कर चुकी हैं। कई बार पुलिस को भी महिला अपराधों को लेकर संवेदनशील होने की सलाह दी जा चुकी है। लेकिन मामला अभी भी तस का जस ही बना हुआ है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी की रिपोर्ट 2021 बताती है कि हमारे देश में रोजाना दुष्कर्म के 86 मामले दर्ज हुए। वहीं, महिलाओं के खिलाफ अपराध के हर घंटे 49 मामले दायर हुए। जो कि बीत साल के मुकाबले ज्यादा हैं। साल 2012 के निर्भया कांड के बाद बहुत कुछ बदला लेकिन अपराध फिर भी नहीं रुके। आज भी लड़कियां रात में सड़क पर चलने से डरती हैं, तो वहीं अपराधी बेखौफ घूमते हैं।
महिला सुरक्षा और सशक्तिकरण के दावे तो खूब होते हैं लेकिन उनकी सच्चाई अखबारों के पन्ने बयां करते हैं। अपराध इस कदर हावी है कि महिलाओं को कुछ भी करने से पहले अपनी सेफ्टी को लेकर दस बार सोचना पड़ता है।