हिंदी की मशहूर कवयित्री सुभद्रा कुमार चौहान और उनकी रचनाएं हमारे बचपन का अहम हिस्सा हैं। उनकी कविता ‘खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी‘ या ‘यह कदंब का पेड़ अगर मां होता यमुना तीरे‘ भला कौन भूल सकता है। हालांकि कम ही लोग ये जानते होंगे कि सुभद्रा जितनी महान कवयित्री थीं, उससे कहीं बढ़कर एक देश भक्त और स्वतंत्रता सेनानी भी थीं।
सुभद्रा कुमारी चौहान के बारे में कहा जाता है कि वह बचपन से ही अलग व्यक्तित्व रखती थीं। उन्होंने अशिक्षा, अंधविश्वास, जाति व्यवस्था और रूढ़ियों के विरुद्ध बहुत छोटी उम्र से ही आवाज़ उठाना शुरू कर दिया था। उनकी पढ़ाई भले ही नौवीं कक्षा के बाद छूट गई, लेकिन उनकी कविताएं और कहानियों को लिखने का सिलसिला जारी रहा।
असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाली वह पहली महिला
सुभद्रा का जन्म 16 अगस्त 1904 में हुआ था और उनका बचपन इलाहाबाद के पास निहालपुर गांव में ही बीता। लेकिन महज 15 साल की उम्र में शादी होने के बाद 1919 में वह मध्य प्रदेश के जबलपुर चली गईं। ये सुभद्रा का विद्रोही स्वभाव ही था, जो उन्हें शादी के डेढ़ साल बाद ही ‘असहयोग आंदोलन‘ की ओर ले बढ़ा। आपको बता दें कि उन्हें साल 1921 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाली वह पहली महिला के तौर पर भी याद किया जाता है। वह इस दौरान दो बार जेल भी गई थीं।
इस आंदोलन का उन पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि वह उससे प्रेरित होकर राष्ट्रप्रेम पर कविताएं लिखने लगीं। उनकी हर एक कविता महिलाओं में कुछ कर गुजरने का जोश भर देती थी। उन्हेंं अपने इस सफर में अपने जीवनसाथी ठाकुर लक्ष्मण सिंह का भी भरपूर साथ मिला। दोनों पति–पत्नी साल 1920-21 के बीच अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य भी रहे। उन्होंने नागपुर कांग्रेस अधिवेशन में भाग लिया और घर–घर जाकर कांग्रेस का संदेश पहुंचाया। सुभद्रा कई स्वतंत्रता आंदोलनों का हिस्सा रहीं।
जेल में भी उनकी कलम नहीं रुकी
अब उन्होंने कविताओं के साथ ही कहानियां लिखना भी शुरू कर दिया था। क्योंकि उस समय सिर्फ कहानी लिखने के पैसे मिलते थे। लेकिन सुभद्रा का असल प्यार उनकी कविता रचना ही थी। उन्होंने अपने जीवन के कई महत्वपूर्ण साल जेल में गुज़ारे। लेकिन यहां भी उनकी कलम नहीं रुकी। उन्होंने देश प्रेम और अन्याय के खिलाफ कई कविताएं लिखीं।
हिंदी साहित्य में सुभद्रा कुमारी चौहान को वीर रस की कवयित्री कहा जाता है। उनके दो कविता संग्रह और तीन कथा संग्रह प्रकाशित हुए। उनकी कविता संग्रहों के नाम ‘मुकुल’ और ‘त्रिधारा’ हैं। साल 1932 में प्रकाशित पंद्रह कहानियों वाली ‘बिखरे मोती।’ साल 1934 में प्रकाशित नौ कहानियों वाली उन्मादिनी। 1947 में प्रकाशित 14 कहानियों वाली ‘सीधे–साधे’ चित्र हैं। कुल मिलाकर उन्होंने 46 कहानियां लिखीं। उस वक्त औरतों के साथ होने वाले भेदभावपूर्ण व्यवहार, उनके उस मानसिक दर्द, संघर्षरत औरतों की पीड़ा, समाज की विद्रूपता को भी सुभद्रा ने अपनी रचनाओं में उतारा है।
स्वतंत्रता संग्राम में खुद को झोंक दिया
सुभद्रा की रचनाओं की बात करें, तो उनकी रचनाओं में राष्ट्रीय आंदोलन, स्त्रियों की स्वाधीनता आदि समाहित है। उनका लेखनी ने अपने शब्दों से लाखों, करोड़ों भारतीय युवकों को उदासी को त्याग, स्वतंत्रता संग्राम में खुद को झोंक देने के लिए प्रेरित किया। ये विडंबना ही है कि सुभद्रा कुमारी चौहान को आज केवल एक सफल कवयित्री के रूप में देखा जाता है लेकिन उनकी एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में भूमिका इससे भी ज्यादा सशक्त रही है।
सुभद्रा के बारे में ये भी कहा जाता है कि वो बचपन से ही चंचल और कुशाग्र बुद्धि की थीं। उन्हें कुछ अलग हटकर करना था और क्योंकि वो पढ़ाई में बहुत अच्छी थीं। इसलिए उनके पिता को उनसे बहुत उम्मीदे भी थीं। और इन उम्मीदों पर सुभद्रा खरी भी उतरीं। उन्होंने महज 9 साल की उम्र में कुछ ऐसा कर दिखाया था जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। साल 1913 में सुभद्रा की पहली कविता पत्रिका ‘मर्यादा’ में प्रकाशित हुई थी। जिसका शीर्षक था “नीम का पेड़”। उनकी यह पहली कविता ‘सुभद्रा कुंवरी’ के नाम से छपी। और फिर उनकी लेखनी अंत समय तक निरंतर चलती रही।
आजादी के कुछ ही महीनों बाद 15 फरवरी 1948 को एक कार दुर्घटना में सुभद्रा कुमारी की मौत हो गई। वो इस दुनिया को अलविदा कह गईं लेकिन वो अपने पीछे अपनी जिंदगी का अनुभव, अपनी कविताएं और कहानियां छोड़ गईं, जो समाज में साहित्य में हमेशा के लिए अमर हैं।
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